Book Title: Tribhuvansinh Kumar Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ त्रिभुवन चरित्रं // 12 // मुत्तिमंतो अहवा / एसो किं पुन्नप्पप्पारो॥१॥ अथ मार्गे गच्छतोस्तयोः परस्परमतीप्री- तिर्जाता, कन्ययोक्तं-चंदनं शीतलं लोके / चंदनादपि चंउमाः // चंद्रचंदनयोर्मध्ये / शो | तलः प्रियसंगमः॥१॥ कत्थवि जलं न छाया / कत्थवि छाया न सीअलं सलिलं // बाया जलसंजुत्तं / तंपिय सरोवरं विरलं // 2 // कुमारेणोक्तं भो कन्ये! त्वमलंकृता सुरसुंदरीसमा सुरूपा लध्वी कथमेकाकिनी स्वपुरं म्वदेशं मुक्त्वात्रागता? तयोक्तं त्वया सहाधुना मम समधिका प्रीतिर्जातास्ति, यतः-श्रादौ तन्व्यो बहन्मध्या। विस्तारिण्यः पदे पदे // क्रमे क्रम विवर्धते / सतां मैत्र्यः सरित्समाः // 1 // कुमारेणोक्तं जो तन्वि ! त्वया निजवृ. त्तांतः कथं गोप्यते ? सत्यं कथय ? एवं कुमारणाग्रहपूर्वकं पृष्टया तया लेखशालापनश्रेष्टिसुतप्रीत्यादिसंबंधः सर्वोऽपि देवकूलागमनं यावत्तस्याग्रे निरूपितः. अथ देवकुले समागतया मया त्वमेव मिलितः, रूपसौजाग्यभरजासुरं सुरसमानं च त्वां दृष्ट्रा सखी प्रेरितया मया पूर्वकर्माधिगतसंबंधस्य तवैव शरणं कृतं, यतः-जिहिं परिमल तिहिं तुच्छ दल / जिदि दल तिहिं नवि गंध // रे चंपय तुह तिन्नि गुण // सदल सुरूव सुगंध // 1 // एवं हे 10 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52