Book Title: Tirthankar 1977 11 12
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ प्रबुद्ध पाठक को मननशील सामग्री प्रदान कर 'तीर्थंकर' समाज का भारी उपकार कर रहा है। आगामी विशेषांक भी लोकरंजक - मनहर हो, ऐसी भावना है । - भागचन्द सोनी, अजमेर श्रमणधारा के तेजस्वी साधक परम श्रद्धेय मुनि श्री चौथमलजी महाराज की गणना इस युग के उन महान् संतों में है, जिन्होंने पीड़ित मानवता के क्रंदन को सुना, समझा और उसके निदान में अपना जीवन अर्पित कर दिया । वे श्रमण धारा के तेजस्वी साधक थे । उनके उपचार के साधन भी अहिंसा - मूलक थे । उनका हृदय विशाल तथा कार्यक्षेत्र विस्तृत था । वे झोपड़ी से लेकर महलों तक पहुँचते थे । उनकी दृष्टि में राजा-रंक, धर्म-जाति का भेद नहीं था । सबको समताभाव से वीरवाणी का अमृत पान कराकर हजारों लोगों को भेदभाव बिना सन्मार्ग पर लगाने का मानवीय कार्य जिस निर्भयता और दृढ़ता से मुनिश्री ने किया, वह अलौकिक है । दुःखियों, पीड़ितों, पतितों और शोषितों के वे सहज सखा थे । उनके कष्टों से द्रवित होते थे | ज्ञानदान द्वारा उनके दुःखों को मिटाने का पुरुषार्थ करते थे । इसलिए तुलसीदासजी ने कहा : 'संत हृदय नवनीत समाना कहाँ कविन पर कहीयन जाना । निज परिताप द्रवें नवनीता परहित द्रवही सो संत पुनीता ॥' पर उपकार ही उनकी पूजा थी । जिसे वे सहज धर्म के रूप में जीवन भर करते रहे । 'तुलसी' ने कहा है : ७८ 'पर उपकार वचन, मन, काया संत सहज स्वभाव खगराया । संत विपट सहिता गिर धरणी परहित हेत इनकी करनी ।' Jain Education International मुनिश्री के जीवन में संत का यह दिव्य चरित्र पग-पग पर भरा-पूरा नजर आता है । मुनि श्री जैन तत्त्वज्ञान के परम उपासक और साधक थे । प्रबल प्रवक्ता थे । उनकी ओजस्वी वाणी में मानव-मन की विकृतियों को नष्ट करने की अद्भुत कला थी । अहिंसा, मैत्री, एकता और प्रेम का सन्देश घर-घर फैला कर उन्होंने मानव समाज और देश की अनुपम सेवा की । मनुष्यों में शुद्ध जीवन जीने की निष्ठा का स्नेह, वात्सल्य से अखंड दीपक जलाया । ऐसे निस्पृह तपस्वी साधु अध्यात्म जगत् में बिरले होते हैं । मुनिश्री की प्रथम जन्म-शताब्दी . भारत भर में मनाई जा रही है । इस रूप में हम उस महान् संत को अपनी पूजा अर्पित कर रहे हैं । यह हमारा परम सौभाग्य है । शताब्दी के पावन - पुनीत अवसर पर मैं उस धर्म-ज्योति को अपनी आंतरिक श्रद्धा अर्पित करता हूं। उन्हें शत-शत नमन करता हूँ । - मिश्रीलाल गंगवाल, इन्दौर मानव सेवा के पथ पर समर्पित व्यक्तित्व जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज अपने युग के महान् संत थे । जैन इतिहास में आपका धर्म प्रचारक के रूप अद्वितीय स्थान रहा है । चेहरे की प्रसन्न मुद्रा देखकर श्रोता का मंत्रमुग्ध हो जाना आपके चरित्र की मुख्य विशेषता रही है । यही कारण था कि तात्कालीन राणा, महाराणा, राजा, महाराजा एवं समाज के अन्य वर्ग के लोगों पर आपके हितकारी वचनों का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा । आपके सदुपदेश से बहुत से राजाओं और जागीरदारों ने अपने-अपने राज्यों में हिंसानिषेध की स्थायी आज्ञाएं प्रसारित कीं । मुनिश्री का संपूर्ण जीवन प्राणिमात्र की रक्षा के पवित्र उद्देश्य के प्रति समर्पित था । जगत् - वल्लभ मुनिश्री चौथमलजी का दृष्टिकोण सदैव व्यापक रहा है । तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202