Book Title: Tirthankar 1977 11 12
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 167
________________ कसोटी - इस स्तम्भ के अन्तर्गत समीक्षार्थ पुस्तक अथवा | पत्र-पत्रिका की दो प्रतियाँ भेजना आवश्यक है ___ जैन सिद्धान्त सूत्र : ब्र.कु. कौशल : आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज ट्रस्ट, दिल्ली : मूल्य-दस रुपये : पृष्ठ ३५८ : डिमाई-१९७६ । __ आलोच्य कृति विदुषी लेखिका की प्रथम कृति नहीं है, इसके पूर्व उसकी और-और कृतियाँ हैं और उसने 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त-कोश के संकलनसंपादन में क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी के साथ काम किया है। मानना चाहिये, सहज ही, कि 'जैन सिद्धान्त सूत्र' उसी की एक कड़ी है अथवा प्रश्नोत्तर शैली में 'मिनी जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' है। पुस्तक में आठ अधिकार हैं, जिनमें क्रमशः न्याय, द्रव्य गुण पर्याय, भाव व मार्गणा गुणस्थान, तत्त्वार्थ, स्याद्वाद, नय-प्रमाण आदि पर गहन विचार हुआ है। वर्णीजी ने इसे 'जैन दर्शन का प्रवेश-द्वार' कहा है। संपूर्ण ग्रन्थ प्रश्नोत्तरों के रूप में है, जिसका मूल आधार पं. गोपालदास बरैया की 'जैन सिद्धान्त-प्रवेशिका' है । इसमें जैन तत्त्व की गूढ़ताओं को जिस सहन-सुगम ढंग से रखा गया है और प्रतिपाद्य का जैसा समस्त-संक्षिप्त-प्रांजल निरूपण किया गया है उसे देखते यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि उक्त कृति श्रावकीय स्वाध्याय का एक विश्वसनीय साथी है । यद्यपि भाषा-प्रयोग यत्र-तत्र शिथिल और सदोष हैं तथापि इसके साहित्येतर होने के कारण उसकी चभन इतनी तीखी नहीं है। फिर भी हमें आश्वस्त होना चाहिये कि ये भूले आगामी संस्करण में, जो जल्दी ही होगा, सुधार ली जाएँगी। जैन आगम साहित्य : देवेन्द्र मुनि शास्त्री : श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, शास्त्री सर्कल, उदयपुर (राजस्थान) : मूल्य-चालीस रुपये : पृष्ठ ७६८ : डिमाई-१९७७ । प्रस्तुत ग्रन्थ आगमों और तत्संबन्धी व्याख्या-ग्रन्थों का एक शोधपरक मन्थन है। ग्रन्थ का चरित्र तुलनात्मक है, इसीलिए वह सफलतापूर्वक जैन, बौद्ध और वैदिक दर्शनों को विभिन्न संदर्भो में एक विशिष्ट वस्तुनिष्ठा के साथ रख पाने में समर्थ है । ग्रन्थ के ७ खण्ड हैं - जैन आगम साहित्य का अनुशीलन, अंग साहित्य का पर्यावलोकन, अंगबाह्य आगम साहित्यका समीक्षण, आगमोंका व्याख्यात्मक साहित्य, दिगम्बर जैन आगम माहित्य, जैन बौद्ध वैदिक दार्शनिक मतों का तुलनात्मक अध्ययन, तथा आगम साहित्य के सुभाषित। परिशिष्टों में पारिभाषिक शब्द-कोश, ग्रन्थगत विशिष्ट शब्द-सूची, संदर्भ ग्रन्थ-विवरण, तथा शब्दानुक्रमणिका देकर विद्वान् लेखक ने ग्रन्थ को अधिक उपयोगी बना दिया है। इसका संप्रदायातीत होना और बिना किसी पूर्वग्रह या दुराग्रह के जैन साहित्य को सम चौ. ज. श. अंक ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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