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फल है । आप त्रुटियों की सूचना देने को करने के लिए राशि-राशि धन्यवाद! क्या लिखते हैं पर वह तो कहीं नजर नहीं ही अच्छा होता यदि आप लोगों जैसा कोई आयीं और अच्छाई की तो कोई सीमा ही दूरदर्शी एवं साहसी व्यक्ति अब इन पत्रिनहीं है। क्या मैं इससे अच्छा कुछ पाता? काओं के व्यक्तित्व का परिचय भी लिख कव्हर से सामग्री तक सभी मनोज्ञ है। डाले और इसी आधार पर उनका समूहीजैन पत्र-पत्रिकाओं का काल, स्थान व करण भी करे । नामानुक्रमिका और ग्राफ सभी यथोचित श्रीमती रमा जैन का पूर्ण परिचय प्राप्त हैं । आपका परिश्रम पूर्णतः सफल हुआ कर हृदय उनके प्रति असीम श्रद्धा और है, सार्थक हुआ है। फिर भी आपकी आज्ञा- गौरव से भर उठा है। अपने विलक्षण कार्यों नुसार एक-दो कमियों का उल्लेख करूँगा। से भारतीय नारी-जाति के इतिहास को _इस अंक में श्रीमती रमाजी का रंगीन कितना महिमान्वित किया है उन्होंने ! चित्र इतना अधिक रंगीन है कि उनकी शाली- और आपका संपादकीय ? वह तो जहाँ नता को नष्ट करता है । इससे तो अच्छा भी है अपूर्व है, अभिनव है, कल्याणमय है । होता वह रंगीन नहीं होता । दूसरी कमी
-राजकुमारी बेगानी, कलकत्ता 'ले आउट' में स्थान का अत्याधिक उपयोग । इस संबन्ध में आपसे मेरा मतभेद हो सकता विचारोत्तेजक उपयोगी सामग्री है। फिर भी मैं कहूँगा कि जैन पत्र-पत्रिकाओं तीर्थंकर' का रमा जन स्मतिपतिकी कव्हर के जो ब्लाक अपनी सामग्री सहित जैन पत्र-पत्रिकाएँ-विशेषांक विद्वान के साथ स्पेस न देकर छापा है उससे वह संपादक की सामयिक सुझबझ, लगन एवं मन पर कोई 'इम्प्रेशन' नहीं डाल पाता। परिश्रम का सूपरिचायक है । जैन पत्रकावैसे आपने दौड़-धूप करके जो यह सब रिता के इतिहास, विकास, स्वरूप, क्षमता सामग्री बटोरी, वह 'नेपोलियनिक' है। एवं आवश्यकताओं के क्षेत्र में अभी कितना -गणेश ललवानी, कलकत्ता कुछ होना अपेक्षित है, इस संबन्ध में विचारो
त्तेजक उपयोगी सामग्री से पूरित इस विशेएक सदी का इतिहास समाहित ।
षांक के प्रकाशन के लिए विद्वान् संपादक बिलकूल आशा के अनुरूप इस विशेषांक बधाई के पात्र हैं। साहित्यिक एवं सांस्कृके सौन्दर्य ने मझ-जैसी भावुक को तो एक तिक क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण अवलम्ब स्व. बार मन्त्रमुग्ध ही कर दिया । कितनी देर रमाजी की स्मति में संयोजित सामग्री भी तक तो देखती रही कव्हर पर विभिन्न उपयक्त है। भाषी पत्रिकाओं की कतरन से लिखित -डा. ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ 'तीर्थंकर' शब्द को !
विश्वकोश खोलने पर कुछ निश्चित ही नहीं कर पायी क्या पहले पढ़, क्या बाद में । क्योंकि एक ही सांस में सारा विशेषांक देख दीपावली की कार्य-व्यस्तता जो थी । गया। जैन पत्र-पत्रिकाओं का वह विश्वकोश सभी लेख एक-से-एक उत्कृष्ट । विशेषांक है। उसमें अतीत का इतिहास है, वर्तमान के इस छोटे से कलेवर में कितनी निपूणता का विश्लेषण है और भविष्य की कल्पना से समाहित किया है आपने एक सदी के है। सीमित पृष्ठों में आपने 'गागर में सागर दीर्घ इतिहास को । जैन पत्र-पत्रिकाएं की कहावत चरितार्थ कर दी है। बड़ा क्या थीं, क्या हैं और उन्हें क्या होना चाहिये; परिश्रम किया है आपने, और बड़ी ही सभी कुछ एक बारगी ही उभर कर स्पष्ट सूझबूझ दिखाई है । इस अंक को पढ़ कर हो गया है। 'इंडेक्सिग' पर अथक परिश्रम पाठकों का ज्ञानार्जन तो होगा ही, भावी
चौ. ज श. अंक
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