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गुरु पंडित उमरावसिंह न्यायतीर्थ ने उन्हें लेखनी और वाणी का आशीर्वाद दिया। चौरासी में उन्होंने मध्यमा (संस्कृत-हिन्दी) तक का अध्ययन किया। अनुभव : जीवन-सूत्र प्रकाश-स्तम्भ
पिताजी अपने ननिहाल में थे। उम्र १५-१६ वर्ष होगी। लालटेन में तेल भर रहे थे। अंधेरा हो चला था। तेल की धार और लालटेन के मुंह में ज़रा-सा मेल बिगड़ा। तेल जमीन पर फैल गया। किरासन तेल मात्रा के अनुपात में फैलता ज्यादा है। मामाजी पास लेटे हुए थे। उन्हें खबर मिली तो लेटे-ही-लेटे धीरे-से कहा-“कमायेगा, तो नहीं गिरायेगा।"
- पिताजी ने उसी समय संकल्प किया, कमाकर दिखाना है और अपनी कमाई का तेल भी गिराकर दिखा देना है। यह संस्मरण पिताजी अपनी ज़िन्दगी में बहुत दफ़े दुहराते हुए कहते-“कमाना तो उसी समय से शुरू कर दिया था, लेकिन आज तक अपनी कमाई का तेल ज़मीन पर गिरा नहीं सका हूँ"। जीविका/राजनीति में प्रवेश
अपने पूर्वजों के नाम को रौशन करने के लिए पिताजी दिल्ली आगये। बाबा की बुआ (बैरिस्टर चम्पतरायजी की बहन मीरो) के वात्सल्यपूर्ण निर्देशन में उन्होंने एक छोटा-सा मकान लिया और बजाजे का पुश्तैनी कार्य संभाला। उनकी मिठास और ईमानदारी पर ग्राहक रीझे रहते थे। कारोबार चल निकला । सुबह-शाम सामायिक, स्वाध्याय और जिन-दर्शन उनका स्वभाव हो गया।
पहाडी धीरज (दिल्ली) में ताऊजी (श्री नन्हेंमलजी जैन) के सहयोग से 'जैन संगठन लाइब्रेरी सभा' की स्थापना की और उसके मंच से सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक उत्सव किये। हिन्दी-उर्दू साहित्य एवं भारतीय इतिहास के उद्धरण उनके भाषणों में प्रवाह लाते। वे वाणी के जादूगर हो गये।
दिल्ली के पहाड़ी धीरज और चाँदनी चौक ने उन्हें अपना राजनैतिक नेता माना। चाँदनी चौक की विशाल जनसभा में धाराप्रवाह भाषण दे रहे थे। 'देहलवी टकसाली जुबान और मौके के चुस्त शेर' भीड़ को भारतमाता की बेड़ियाँ तोड़ने पर जोश भर रहे थे। पुलिस-उच्चाधिकारी ने अदालत में कहा था-"गोयलीय साहब को सभा में गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल था। आप अवाम पर छाये हुए थे। पूरी भीड़ हम पर टूट पड़ती; अतः हमने मीटिंग ख़त्म होने पर ही गोयलीयजी को गिरफ्तार करना मुनासिब समझा।"
आदरणीय ताऊजी (लाला नन्हेंमलजी जैन) और पिताजी दिल्ली में एक साथ गिरफ्तार हुए। दादी ने अपने बेटों को जी भरकर आशीर्वाद दिया और कहा, "मैंने तुम्हें इसीलिए (आज के लिए) जना था।" जनता ने जयजयकार की।
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तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७
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