________________
संरक्षण, व्यवस्थापन, संग्रहण इत्यादि पर ध्यान दिया और उगती पीढ़ी को उनके महत्त्व को समझाया।
उनकी क्रान्ति का मूल लक्ष्य, यदि वस्तुतः देखा जाए, तो व्यक्ति ही है। एक अच्छे धनुर्द्धर की तरह उनका ध्यान व्यक्ति को आमूल बदलने पर रहा। उन्होंने उस व्यक्ति को जो मध्य युग के सांस्कृतिक और सामाजिक हमलों के कारण जगह-जगह से क्षत-विक्षत हो गया था और पैबन्दों की ज़िन्दगी जी रहा था, उसे साबित किया और पूरे बल के साथ उसे फिर खड़ा किया। उसकी निराशाओं को दूर किया और उसमें प्रकाश की अनन्त शक्तियों को उन्मुक्त किया। उन्होंने ज्ञान के स्रोतों को सहज उपलब्ध कर उसके स्वाभाविक व्यक्तित्व को पुनरुज्जीवित किया और वह बुराइयों से जूझ सके इतनी ताकत और इतने पुरुषार्थ से उसे लैस किया। यों कहा जाएगा कि उन्होंने चुकते हुए हिम्मतपस्त श्रावक को आत्मनिर्भर और साहसी-पराक्रमी होने के लिए ढाढस बंधाया, उसे उत्साहित किया। मूल में जैन साधना व्यक्ति-मंगल की साधना है; श्रमण संस्कृति व्यक्ति को मांज कर पूरे समाज को मांजने वाली संस्कृति है। व्यक्ति समाज की इकाई है, यदि सारी इकाइयाँ सबल हैं, फलप्रद हैं, पराक्रमी हैं, तो कोई ऐसा कारण नहीं है कि समाज का पतन हो और उसे गुलामी या अज्ञान के दिन काटने पड़ें। जैन दर्शन के आत्म स्वातन्त्र्य की ओर आंखें उघाड़ कर श्रीमद् ने व्यक्ति को साहसी, सहिष्णु, धैर्यवान और सत्यनिष्ठ बनाया।
इस तरह हम देखते हैं कि श्रीमद् की क्रान्ति एक सम्पूर्ण, सर्वतोभद्र, सर्वतोमुख और लोकमंगलोन्मुख क्रान्ति थी जिसने व्यक्ति और समाज दोनों को जड़मूल से बदला और उनकी कोणात्मकता, बर्बरता और जड़ता को क्रमश: स्निग्धता, करुणा और ज्ञान-गरिमा में परिवर्तित किया।
श्रद्धा आवश्यक है “संस्कृति केवल दार्शनिक विचारों पर अवलम्बित नहीं होती । विचारों की अव्यक्त भूमिका में श्रद्धा का होना आवश्यक है। श्रद्धा शब्द श्रत से बना है। श्रत् का अर्थ है सत्य । जहाँ यह भाव हो कि यह सत्य है, चाहे इसका आज प्रत्यक्ष न हो रहा हो परन्तु एक दिन हो कर रहेगा, वहीं श्रद्धा का निवास होता है। केवल दार्शनिक विचार किसी को पण्डित बना सकते हैं, परन्तु उनमें सर्जन-शक्ति नहीं होती। रूस में आज नया विचार और उसके साथ दृढ़ श्रद्धा है। उसने नयी कला, नये साहित्य को जन्म दिया है, जीवन को नया रूप दिया है, शिक्षा की दिशा बदल दी है।
-डॉ. संपूर्णानन्द, १९५३
तीर्थंकर : जून १९७५१७८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org