Book Title: Tirthankar 1975 06 07
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 209
________________ श्रद्धा ञ्ज लि स्व. कपूबाई केसरीमलजी शाह् माँ ! ठीक एक साल पहले ९ मई, १९७४ को तुम इहलोक से बिदा हो गयीं । जाते-जाते तुमने मेरे मनःप्राण एकत्व और अशरण भाव से ओतप्रोत कर दिये । आज मैं इन्हीं दो भावों का कठोर अनुभव प्राप्त कर रहा 1 सच ही तो है; इस अध्रुव, अशाश्वत, और दुःखप्रचुर संसार में सिवा सद्धर्म के, जो संसार-क्लेश से जीवों को उत्तम सुख में सुस्थिर करता है, और कौन शरण जाने योग्य है ? भव-भ्रमण करती तुम्हारी आत्मा को वर्तमान पर्याय में सुख का अनुभव हो यही एक शुभाकांक्षा है; तुम्हारे इस प्रथम स्मृति दिवस पर यह है तुम्हारे पुत्र की एक भावभीनी श्रद्धाञ्जलि ! Jain Education International For Personal & Private Use Only - बसन्तीलाल www.jainelibrary.org

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