Book Title: Tirthankar 1975 06 07 Author(s): Nemichand Jain Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore View full book textPage 1
________________ तायकरसवषयूप्रकरजूनश्रुष्पप्रामाद्वजयराज सुरीर नशे सम्पादक-नेमीचन्द जैन॥ dauम साधुश्रावकसमेतकरणी करावणो.पचकावरवाण सदाधापनाजी कीपडिलेदणकरणा. दजी।घोडाथागाउीउपर नदी बेठना सवारीरवरचनदीरावण तीजी 39धनही रवoयागृदस्थीवासका39Yधणा उपोलादेरव तोउनके दाधनहीलगामातमंचाशनहीरगा। सायासुएकान्त वेठबात नहीकरना वैश्या तथानसकवाके नहीवेटणा उणाने नदीरारवाजो साधुतमाखुखायतथागजाजांग नीव रात्रि जोजनकरे,कांदालसारवावे.लपटी परवाणी होवे एसा गुणका साधुहीवेतीपासराव नदी। सचिनलीनीतिकरचापरिवनस्थतिकुं विणासणानहीकारणा नहीदांताधरणानही तेलफुलला भ्रमण पुंश्राम्यतीति श्रमणा: साधो स्था ठाउ० श्राम्यति श्रममानथति दियाणि मनमोतिश्रमण विषयाविन्नी जवति तपस्य पावग(य)-श्रावक-पुं० अवाप्तदृष्ट्यादिविशुदत तियःसाधुजनादतन्द्र Bथवा-श्रन्ति-एचन्ति रथावपन्ति गुणवत-सप्त वाकिरन्तिाष्टकर्भर प्रावकर भिवति जिन संकविंशतिगुणयुक्त एवं एम्मरयण शब्देचतुर्थ गोति माध्सपिसान hdमान Jain Education International 1.1.75Page Navigation
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