Book Title: Tirthankar 1975 06 07 Author(s): Nemichand Jain Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore View full book textPage 7
________________ विश्वपुरुष राजेन्द्रसूरि जब भी हम किसी महापुरुष का मूल्यांकन करते हैं, हमारे सम्मुख उसके जीवन की और उसकी समकालीन घटनाएँ होती हैं। उसने अपने युग के साथ क्या सलूक किया, उसे कितना सहा, कितना मोड़ा, कितना पहचाना इसका लेखाजोखा ही उसके व्यक्तित्व को प्रकट करता है। उसके युग की समस्याओं और उन समस्याओं का उसकी वैयक्तिक रुचियों और क्षमताओं से कितना सामरस्य था और कितना नहीं, इसका प्रभाव भी मल्यांकन पर पड़ता है। इस दष्टि से जब हम राजेन्द्रसूरिजी के व्यक्तित्व की समीक्षा करते हैं तब हमें लगता है कि उनका व्यक्तित्व जागतिक था, वह किसी एक समाज या मुल्क तक सीमित नहीं था। वे खुले मन और मस्तिष्क के श्रमण थे, उनके कृतित्व में कोई ग्रन्थि नहीं थी। उनमें संकल्प की अद्वितीय अविचलता थी और वे जिस बात को भावी पीढ़ी के कल्याण में देखते थे, उसके करने-कराने में न तो कोई विलम्ब करते थे और न ही कोई भय रखते थे। अभय उनके चरित्र का एक महत्वपूर्ण गुण था। समय के बारे में उनकी नियमितता ने भी उनकी समकालीन पीढ़ी को प्रभावित किया। वे 'ठीक वक्त श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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