Book Title: Tirthankar 1975 06 07
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 136
________________ हमारी कोश-परम्परा और 'अभिधान राजेन्द्र' श्रीमद् की महती भावना थी कि यह कोश उनके जीवन-काल में छप कर तैयार हो जाए। उन दिनों लीथोप्रेस का प्रचलन हुआ ही था। कोश का एक फॉर्म छाप कर श्रीमद् को बतलाया भी गया; किन्तु वह सन्तोषप्रद न होने से रोक देना पड़ा। गुरुदेव के देह-विलय (सन् १९०६) के पश्चात् लगभग चार लाख की लागत में 'जैन प्रभाकर प्रेस' की स्थापना रतलाम (मालवा) में इस कोश की छपाई हेतु की गयी। लगातार सत्रह वर्षों तक इसकी छपाई का कार्य श्रीमद् के दीक्षित मुनि श्री यतीन्द्रविजयजी एवं मुनिश्री दीपचन्दजी की देख-रेख में पूर्ण हुआ। 0 इन्द्रमल भगवानजी जैन आचार्यों एवं साहित्यकारों ने भारतीय साहित्य की विविध विद्याओं को विभिन्न भाषाओं में अत्यधिक समृद्ध किया है। जैन तत्त्वज्ञान-तर्क पौराणिक आख्यान-नीतिग्रन्थ और जैन सत्त्व विद्या प्रभृति सिद्धान्त-ग्रन्थों में जैनधर्म का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है जिनकी प्रस्तुति में वास्तविक अर्थबोध हेतु बहुतेरे पारिभाषिक एवं विशेष अर्थ-गर्भित शब्दों का प्रयोग किया गया है। जैन साहित्य से अनभिज्ञ कोशकारों द्वारा निर्मित शब्दकोशों से ऐसे जैन पारिभाषिक और विशेषार्थ-गभित शब्दों के यथार्थ अर्थ का ज्ञान सम्भव नहीं। ऐसे पारिभाषिक शब्दों के विशेषार्थ के अज्ञानवश कभी-कभी कैसी गंभीर भूलें हो जाती हैं जिनके उदाहरण 'सत्यार्थ प्रकाश' में जैन मुनि की आलोचना करते 'रजोहरण' शब्द का भ्रान्त अर्थ तथा वेदों में प्रयुक्त 'वात्य' शब्द हैं। शब्दों के सम्यक् अर्थबोध हेतु जैन आचार्य एवं जैन ग्रन्थकारों ने शब्द-कोशों का निर्माण लगभग ग्यारह शताब्दी पूर्व तभी करना आरम्भ कर दिया था जब संसार की किसी भी अन्य भाषा की शब्द-सम्पदा के संकलन के आरम्भ का उल्लेख भी उपलब्ध नहीं। सर्वाधिक विश्वप्रचलित आंग्ल (अंग्रेजी) भाषा के विश्व-कोश एन्सायक्लोपीडिया ब्रिटानिका का प्रथम संस्करण १७६८ ई. में तैयार हुआ था। उन दिनों छापेखाने (प्रिंटिंग-प्रेस) तो आविष्कृत थे नहीं। अतएव यह शब्दकोश हाथ से लिखकर कई लोगों ने लगभग बीस वर्षों में पूर्ण किया था। इसके पश्चात् इसी विश्वकोश का दूसरा संस्करण नौ वर्ष पश्चात् हस्तलिखित रूप में नवीन सुधारों के साथ १७७७ ई. में तैयार हुआ। इसी क्रम से सवा सौ वर्षों में अर्थात् सन् १९०२ तक इस महाकोश के आठ संस्करण क्रमशः तैयार किये गये। अब तक अनेकानेक सुधार-संशोधन करते तीर्थकर : जून १९७५/१३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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