Book Title: Tirthankar 1975 06 07
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 205
________________ जब १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो रही थी, सूरिजी अहमदाबाद में वर्षावास कर रहे थे। वे अपनी एकान्त साधना में पूरे मनोयोग से लगे हुए थे, उनकी किसी कृति में कहीं भी भारतीय राजनीति या संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों की झलक नहीं है। इसका एक स्पष्ट कारण यह भी है कि एक जैन साधु को धर्म और दर्शन के अतिरिक्त क्षेत्रों में कार्य करने की छट नहीं है; इसीलिए सम्भवतः उन्होंने धर्म के माध्यम से जो भी नवजागृति सम्भव थी, घटित की; शेष साधनों का उपयोग न कर पाना उनकी विवशता थी। रेलें चलना आरम्भ हो चुकी थीं। १८५३ में जब वे जैसलमेर में वर्षावास सम्पन्न कर रहे थे, देश में रेल की पाँतें बिछायी जा रही थीं और तार का एक बड़ा जाल फैलाया जा रहा था। अंग्रेज यह सब अपनी दिलचस्पियों के कारण ही कर रहे थे किन्तु इनका भी अपना महत्त्व था । भारतीय लोकजीवन में आगे चलकर जो क्रान्ति घटित हुई, ये आविष्कार उसके बहुत बड़े माध्यम सिद्ध हुए। छापाखाने के आ जाने से भारतीय भाषाओं के विकास में बहुत बड़ी सहायता मिली। सूरिजी अन्य साधुओं की भाँति कट्टरपन्थी नहीं थे। एक हद में वे उन सारे साधनों का उदारता से उपयोग करना चाहते थे, जिन्हें बिना किसी बड़े धार्मिक परिवर्तन के लिए किया जा सकता था। जैन शास्त्रों का उन दिनों छपाई की प्रक्रिया में डाला जाना, स्वयं एक क्रान्तिकारी घटना थी। सूरिजी ने निःसंकोच “कल्पसूत्र की बालावबोध टीका" को मुद्रण की प्रक्रिया में डाल दिया। इससे जहाँ एक ओर भारतीय भाषा के प्रसार में सहायता मिली वहीं दूसरी ओर नागरी लिपि का भी प्रसार हुआ। "अभिधान-राजेन्द्र", जो आगे चलकर प्रकाशित हुआ और जिसमें ९,२०० पृष्ठ हैं, संस्कृत, अर्धमागधी और प्राकृत से सम्बन्धित है; इसे भी उन्होंने १९०६ ई० में मुद्रण की प्रक्रिया में डाल दिया। वे इसका पहला फार्म ही देख पाये और उनका निधन हो गया। बाद में तो वह छपा ही, किन्तु उनके जीवन-काल में ही उन्होंने उन सारे साधनों को उदारतापूर्वक अपना लिया था, जिनसे अहिंसा और अपरिग्रह का पालन करते हुए भी लाभ उठाया जा सकता था। ___ नीचे हमने उन सारी घटनाओं की एक तुलनात्मक तालिका दी है, जो राजेन्द्रसूरिजी के जीवन-काल में देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में घटित हुई हैं। इनकी तुलना से राजेन्द्रसूरिजी की एकान्त साहित्य-साधना और क्रान्ति-निष्ठा का समीक्षात्मक अध्ययन किया जा सकता है और स्पष्ट देखा जा सकता है कि एक असंपृक्त व्यक्ति भी किस तरह युग-चेतना से प्रभावित होकर अपनी भूमिका का एक सीमित क्षेत्र में निभाव कर सकता है। हमें विश्वास है अधोलिखित घटना-तालिका से राजेन्द्रसूरिजी के समकालीन भारत की एक झलक हमें मिल सकेगी और हम उनके योगदान का एक वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन कर सकेंगे। तालिका इस प्रकार है श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक /२०१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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