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'अभिधान-राजेन्द्र-कोश' : कुछ विशेषताएँ
- राजमल लोढ़ा
श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने जीवन-पर्यन्त संयम-यात्रा द्वारा धर्म-साधना की और राजस्थान, मालवा, निमाड़, गुजरात आदि प्रदेशों में परिभ्रमण कर स्व-पर कल्याण किया।
'पूर्वाचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थ तो बहुत-से हैं, लेकिन कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिससे तीर्थकरों के उपदेशों को सर्व-साधारण तक संपूर्णता के साथ पहुँचाया जा सके'-इस अभाव की प्रतीति श्रीमद् राजेन्द्रसूरि को लगातार हो रही थी। ६३ वर्ष की वृद्धावस्था में उन्होंने इस की पूर्ति के लिए 'कोश'-रचना का दृढ़-संकल्प कर आश्विन शु. २, सं. १९४६ को सियाणा (राजस्थान) में लिखना शुरू किया। वृद्धावस्था होने के बावजूद अपने प्रतिदिन के के कार्य, प्रतिक्रमण, व्याख्यान,स्वास्ध्याय, प्रतिष्ठा, विहार आदि अविराम करते हुए वे निर्माण को उसकी समग्रता, वैज्ञानिकता और परिपूर्णता के साथ अग्रसर करते रहे । १४ वर्षों के अध्यवसाय के परिणाम-स्वरूप 'अभिधान राजेन्द्र कोश' सात भागों में सूरत (गुजरात) में सं. १९६० में संपन्न हुआ। यह उनके जीवन की महत्तम उपलब्धि थी।
शिल्पकार श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने 'कोश' को संस्कृत में सरल, सरस और सुबोध शैली में लिखा है। इसमें जैन मूलतत्त्वों का द्रव्यानुयोग, चरण-करणानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग, स्याद्वाद, ईश्वरवाद, नवतत्त्व, भूगोल, खगोल आदि कोई विषय अछूता नहीं रहा है। इतना ही नहीं, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं के आचार-विचार भी आगम-ग्रन्थों के अनुसार कैसे हों-इसका विशद विवेचन किया गया है ।
'कोश' की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि मागधी भाषा के अनुक्रम से शब्दों पर विषयों का विस्तृत विवरण है। जो भी विद्यार्थी या विद्वान् अपने जिस विषय का अवलोकन करना चाहे वह इस महान् ग्रन्थ में एक ही स्थान पर प्राप्त कर सकता है। इतना ही नहीं, सर्वसाधारण की जानकारी के लिए विषय-सूची भी दी गयी है, जिससे सरलता से किसी भी तथ्य को प्राप्त करने में विलम्ब न हो। प्रत्येक विषय की प्रामाणिकता के लिए मूलसूत्रों की निरुक्ति, भाषा, चूर्णि, टीका तथा तत्संबंधी और भी प्राचीन प्रामाणिक आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों के प्रमाण ग्रन्थों की नामावली के साथ प्रस्तुत किये हैं । विषय का सम्पूर्ण प्रतिपादन मौलिक रूप में
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/९५
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