Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 14
________________ १५ तिलोयपात्ती ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है और यहां प्राकृत भाषाविज्ञ डा. कमलबन्द्र जी सोगानी, डा० मानो जैन मौर डाली जैज रनकोटि के विद्वान हैं। समय-समय पर आपके सुझाव आदि बराबर प्राप्त होते रहे हैं । प्रतियों के मिलान एवं पाठों के चयन आदि में मा० उदयचन्द्रजो का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है। सम्पारक श्री चेतनप्रकाशजी पाटनो सौम्य मुद्रा, सरल हृदय, संयमित जीवन और समीचीन ज्ञान भण्डार के धनी हैं । सम्पादन-कार्य के अतिरिक्त समय-समय पर आपका बहुत सहयोग प्राप्त होता रहा है। आपको कार्यक्षमता बहुत कुछ अंशों में श्री रतनचन्द्रजी मुख्तार के रिक्त स्थान को पूर्ति में सक्षम सिद्ध हुई है। पूर्व अवस्था के विद्यागुरु, अनेक ग्रन्थों के टीकाकार, सरल प्रकृति, सौम्याकृति, अपूर्व विद्वत्ता से परिपूर्ण, विवच्छिरोमणि वयोवृद्ध पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य की सत्प्रेरणा मुझे निरन्तर मिलती रही है और भविष्य में भी दीर्घकाल पर्यंत मिलती रहे. ऐसी भावना है। श्रीमान् उदारवेत्ता दानशील श्री निर्मल कुमारजी सेठी इस ज्ञानयज्ञ के प्रमुख यजमान हैं। वे धर्म कार्यों में इसी प्रकार अग्रसर रह कर धर्म उद्योत करने में निरन्तर प्रयत्नशील बने रहें। श्रीमान् कजोड़ीमली कामदार, श्री धर्मचन्द्रजी शास्त्रो, श्रीमान् मीरजली, प. चंचलबाई, ब० कुमारी पंकज, प्रेस मालिक श्री पाँचलाली, श्री विमलप्रकाशजी ड्राफ्ट्स मेन अजमेर, श्री रमेशचन्दजी मेहता जदयपुर और मुनिमक्त दि० जैन समाज उदयपुर का पूर्ण सहयोग प्राप्त होने से ही आज यह ग्रन्थ नवीन परिधान में प्रकाशित हो पाया है। प्राशीव-इस सम्यग्ज्ञान रूपी महायज्ञ में तन, मन एवं धन आदि से जिन-जिन भव्य जीवों ने किञ्चित् भी सहयोग दिया है वे सब परम्पराय शीघ्र ही विशुद्ध ज्ञान को प्राप्त करें । यही मेरा आशीर्वाद है। अन्तिम-मुझे प्राकृत भाषा का किञ्चित् भी ज्ञान नहीं है। बुद्धि अलप होनेसे विषयज्ञान भी न्यूनतम है। स्मरण शक्ति पीर शारीरिक शवित क्षीण होती जा रही है। इस कारण स्वर, व्यंजन, पद, अर्थ एवं गणित प्रादि की भूल हो जाना स्वाभाविक है क्योंकि–'को न विमुह्यति शास्त्र-समुद्रे' । प्रतः परम पूज्य गुरुजनों से इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं । विद्वज्जन ग्रन्थ को शुद्ध करके ही अर्थ ग्रहण करें। इत्यलम् । भद्रं भूयात् । सं० २०४० -प्रायिका विशुबमती बसन्त पंचमी दिनांक ७-२-१९८४

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