Book Title: Tattvartha Sutra aur Uski Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 55
________________ ४२ : तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा वश 'सर्व' पद छुट गया होगा किन्तु यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अपनी टीका में सिद्धसेनगणि और हरिभद्र ने भी तत्त्वार्थभाष्य के इस अंश को इसी रूप में स्वीकार किया है। प्रश्न यह है कि जब तत्त्वार्थभाष्यकार ने उक्त स्त्र का उतरार्ध 'सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु' स्वीकार किया, तब अन्यत्र उसे उद्धृत करते समय वे उसके 'सर्व' पद को क्यों छोड़ गए। पद का विस्मरण हो जाने से ऐसा हुआ होगा यह बात बिना कारण के कूछ नपी-तुली प्रतीत नहीं होती। यह तो हम मान लेते हैं कि प्रमादवश या जान-बूझकर उन्होंने ऐसा नहीं किया होगा, फिर भी यदि विस्मरण होने से ही यह व्यत्यय माना जाय तो इसका कोई कारण अवश्य होना चाहिए। हमारा तो ख्याल है कि तत्त्वार्थभाष्य लिखते समय उनके सामने सर्वार्थसिद्धि मान्य सत्रपाठ अवश्य रहा है और हमने क्या पाठ स्वीकार किया है इसका विशेष विचार किये बिना उन्होंने अनायास उसके सामने होने से सर्वार्थसिद्धिमान्य सत्रपाठ का अंश यहाँ उद्धृत कर दिया है । यह भी हो सकता है कि अध्याय १ सूत्र २० का भाष्य लिखते समय तक वे यह निश्चय न कर सके हों कि क्या इसमें 'सर्व' पद को 'द्रव्य' पद का विशेषण बनाना आवश्यक होगा या जो पुराना सूत्रपाठ है उसे अपने मूलरूप में ही रहने दिया जाय और सम्भव है कि ऐसा कुछ निश्चय न कर सकने के कारण यहाँ उन्होंने पुराने पाठ को हो उद्धृत कर दिया हो। हम यह तो मानते हैं कि तत्त्वार्थभाष्य प्रारम्भ करने के पहले ही वे तत्त्वार्थस्त्र का स्वरूप निश्चित कर चुके थे फिर भी किसी खास सूत्र के विषय में शंकास्पद बने रहना और तत्त्वार्थभाष्य लिखते समय उसमें परिवर्तन करना सम्भव है। जो कुछ भी हो इस उल्लेख से इतना निश्चय करने के लिए तो बल मिलता ही है कि तत्त्वार्थभाष्य लिखते समय वाचक उमास्वाति के सामने सर्वार्थसिद्धिमान्य सूत्रपाठ अवश्य होना चाहिए।" इस सम्बन्ध में मेरा दृष्टिकोण यह है कि अपने ही ग्रन्थ में अपने किसी सूत्र को उद्धृत करते समय यह आवश्यक नहीं है कि पूरे ही सूत्र को उद्धृत किया जाये। स्वयं पं० जी इसी सन्दर्भ में पूर्व में यह स्वीकार कर चुके हैं कि “साधारणतः ये टीकाकार कहीं पूरे सूत्र को उद्धृत करते हैं और कहीं उसके एक हिस्से को ऐसी स्थिति में उद्धृत करते समय यदि द्रव्य के पूर्व सर्व विशेषण को उद्धृत नहीं किया तो, इससे यह नहीं कहा जा सकता कि सूत्रकार स्वयं ही टीकाकार नहीं हो सकता।" विशेष बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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