Book Title: Tattvartha Sutra aur Uski Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 153
________________ १३८९ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा सके हैं। बरन नाम का उल्लेख भो मुस्लिम इतिहासकारों ने दसवीं सदी के बाद ही किया है । इतिहासकारों ने इस ऊँचागाँव किले का सम्बन्ध तोमर वंश के राजा अहिवरण से जोड़ा है, अतः इसकी अवस्थिति ईसा के पाँचवीं-छठी शती से पूर्व तो सिद्ध ही नहीं होती है। यहाँ से मिले सिक्कों पर 'गोवितसबाराणये' ऐसा उल्लेख है । स्वयं कनिंघम ने भी यह सम्भावना व्यक्त की है कि इन सिक्कों का सम्बन्ध वारणाव या वारणावत से रहा होगा। वारणावर्त का उल्लेख महाभारत में भी है जहाँ पाण्डवों ने हस्तिनापुर से निकलकर विश्राम किया था तथा जहाँ उन्हें जिन्दा जलाने के लिये कौरवों द्वारा लाक्षागृह का निर्माण करवाया गया था । बारणावा ( बारणावत ) मेरठ से १६ मील और बुलन्दशहर (प्राचीन नाम बरन ) से ५० मील की दूरी पर हिंडोन और कृष्णा नदी के संगम पर स्थित है। मेरी दृष्टि में यह वारणावत वहीं है जहाँ से जैनों का 'वारणगण' निकला था। 'वारणगण का उल्लेख भी कल्पसूत्र स्थविरावली एवं मथुरा के अभिलेखों में उपलब्ध होता है। अतः बारणाबत ( वारणावर्त ) का सम्बन्ध वारणगण से हो सकता है न कि उच्चनगिरो शाखा से, जो कि कोटिगण को शाखा थी। अतः अब हमें इस भ्रान्ति का निराकरण कर लेना चाहिए, कि उच्चैर्नागर शाखा का सम्बन्ध किसी भी स्थिति में बुलन्दशहर से नहीं हो सकता है। यह सत्य है कि उच्चै गर शाखा का सम्बन्ध किसी ऊँचानगर से ही हो. सकता है। इस सन्दर्भ में हमने इससे मिलते-जुलते नामों की खोज प्रारंभ की। हमें ऊंचाहार, ऊँचडीह, ऊंचोबस्तो, ऊँचौलिया, ऊँचाना, ऊँच्चेहरा आदि कुछ नाम प्राप्त हुए। हमें इन नामों में ऊँचहार ( उ० प्र०) और ऊँचेहरा ( म०प्र० ) ये दो नाम अधिक निकट प्रतीत हुए। ऊँचाहार की सम्भावना भी इस लिए हमें उचित नहीं लगी . १. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ० सं० ६०८, ६४० २. कनिंघम-अर्कियोलाजिकल सर्व आफ इण्डिया, वाल्यू० १४, पृ० १४७ ३. वही, ४. ऐतिहासिक स्थानावली, पृ० सं० ८४३-४४ ५. कल्पसूत्र, स्थविरावली, २१२ ६. ऊँच्छ नामक अन्य नगरों के लिए देखिए-The Ancient Geography of India (Cunningham ) pp. 204-205 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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