Book Title: Tattvartha Sutra aur Uski Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 157
________________ १४४ : तत्त्वार्थसूत्र और उसको परम्परा संकेत किया है-उमास्वाति उस काल में हुए हैं जब वैचारिक एवं आचारगत मतभेदों के होते हुए भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ था। इसी का यह परिणाम है कि उनके ग्रन्थों में कुछ तथ्य श्वेताम्बरों के अनुकूल और कुछ प्रतिकूल, कुछ तथ्य दिगम्बरों के अनुकूल और कुछ प्रतिकूल तथा कुछ तथ्य यापनोयों के अनुकूल एवं कुछ उनके प्रतिकूल पाये जाते हैं । वस्तुतः उनकी जो भी मान्यताएं हैं, उच्चनागर शाखा की मान्यताएँ हैं । अतःमान्यताओं के आधार पर वे कोटिकगण की उच्चनागर शाखा के थे। उन्हें श्वेताम्बर, दिगम्बर या यापनीय मान लेना संभव नहीं है। ५. उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र के आधार के रूप में जहाँ श्वेताम्बर विद्वान् श्वेताम्बर मान्य आगमों को प्रस्तुत करते हैं, वहीं दिगम्बर विद्वान् षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द के ग्रन्थों को सत्त्वार्थसूत्र का आधार बताते हैं। किन्तु ये दोनों ही मान्यताएँ भ्रांत हैं, क्योंकि उमास्वाति के काल तक न तो षट्खण्डागम और न कुन्दकुन्द के ग्रन्थ अस्तित्व में आये थे और न श्वेताम्बर मान्य आगमों की बलभी वाचना ही हो पायी थी । षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द के ग्रन्थ जिनमें गणस्थान सिद्धान्त का विकसित रूप उपलब्ध है, तत्त्वार्थ के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते हैं । गुणस्थान सिद्धान्त और सप्तभंगी की अवधारणाएँ जो तत्त्वार्थ में अनुपस्थित हैं वे लगभग पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अस्तित्व में आयीं । अतः उनसे युक्त ग्रन्थ तत्त्वार्थ के आधार नहीं हो सकते हैं। वलभी को वाचना भी विक्रम की छठी शताब्दी के पूर्वार्ध में ही सम्पन्न हुई है अतः वलभी वाचना में सम्पादित आगम-पाठ भी तत्त्वार्थसूत्र का आधार नहीं माने जा सकते हैं, किन्तु यह मानना भी भ्रांत होगा, कि तत्त्वार्थ का आधार आगम ग्रन्थ नहीं थे। वलभी वाचना में आगमों का संकलन एवं सम्पादन तो हुआ तथा उन्हें लिपि बद्ध भी किया गया। किन्तु उसके पूर्व उन आगम ग्रन्थों का अस्तित्व तो था ही, क्योंकि वलभो में कोई नये आगम नहीं बने थे। उमास्वाति के सम्मुख जो आगम ग्रन्थ उपस्थित थे, वे न तो देवधि की वलभी ( वीर० सं० ९८०) के थे और न स्कन्दिल की माथुरी वाचना वीर नि० सं० ८४० के थे, अपितु उसके पूर्व की आर्यरक्षित को वाचना के थे। यही कारण है कि उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र की अवधारणाओं में भी कहीं-कहीं वलभी वाचना से भिन्नता परिलक्षित होती हैं। ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी में जो आगम ग्रन्थ उपस्थित थे, वे ही उमास्वाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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