Book Title: Tattvanyaya Vibhakar
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas

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Page 25
________________ (२०) तत्त्वन्यायविभाकरे जीवाजीवविषयकद्वेषजनकक्रिया प्रादोषिकी । स्वपरसन्तापहेतुः क्रिया पारितापनिकी । स्वपरप्राणवियोगप्रयोजिका क्रिया प्राणातिपातिकी । जीवाजीवभेदभिन्ना जीवाजीवघातात्मिका चेष्टाऽऽरम्भिकी । जीवाजीवविषयिणी मूर्छानिवृत्ता क्रिया पारिग्रहिकी। मोक्षसाधनेषु मायाप्रधाना प्रवृत्तिर्मायाप्रत्ययिकी। अभिगृहीतानभिगृहीतभेदभिन्ना अयथार्थवस्तुश्रद्धानहेतुका क्रिया मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी । जीवाजीवविषयिणी विरत्यभावानुकूला क्रियाऽप्रत्याख्यानिकी। प्रमादिनो जीवाजीवविषयकदर्शनादरात्मिका क्रिया दृष्टिकी । सदोषस्य जीवाजीवविषयक स्पर्शनं स्पृष्टिकी । प्रमादात् प्राक्स्वीकृतपापोपादानकारणजन्यक्रिया प्रातीत्यिकी । कारुण्यवीरबीभत्सादिरसप्रयोक्तृणां प्रेक्षकाणां च सानुरागिणां नाट्यादिजन्या क्रिया सामन्तोऽपनिपातिकी। यंत्रादिकरणकजलनिःसारणधनुरादिकरणकशरादिमोचनान्यतररूपा क्रिया नै शस्त्रिकी । सेवकयोग्यकर्मणां क्रोधादिना स्वेनैव करणं स्वाहस्तिकी । अहदाज्ञोल्लंघनेन जीवादिपदार्थप्ररूपणा यद्वा जीवाजीवान्यतरविषयकसावद्याज्ञाप्रयोजिका क्रिया आज्ञापनिकी । पराऽऽचरिताप्रकाशनीयसावद्यप्रकाशकरणं विदारणिकी । अनवेक्षितासंमार्जितप्रदेशे शरी

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