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तुलनात्मक अध्ययन सौत्रिक
१ औपपातिकसूत्रमें तपके १२ भेदोंका वर्णन एवं ठाणांगसूत्रके छठे ठाणे और भगवतीगत तप-वर्णन । 'वण्णओ जहा उववाइए' कई सूत्रोंमें मिलता है। २ रायपसेणइयमें सूयोभ एवं जीवाजीवाभिगममें विजयदेवका वर्णन।
३ पण्णवणाके बहुतसे पाठ भगवतीसूत्रानुगत हैं। सिद्धसंबंधी औपपातिकसूत्रकी बहुतसी गाथाएँ पण्णवणामें दृष्टिगत होती हैं।
४ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति एवं स्थानांगसूत्रके नवमस्थानगत पर्वत-द्रह-नदी-नामादि ।
५ चंद्रप्रज्ञप्ति एवं सूर्यप्रज्ञप्तिके आरंभक्रममें थोड़ा सा भेद है शेष पाठ अक्षरशः मिलता है।
६ बृहत्कल्पमें स्थानांग व्यवहार तथा निशीथके पाठ मिलते हैं।
७ दशाश्रुतस्कंध १-२-३-९ दशा समवायके अनुसार आचार-सम्पत् आदि स्थानांगके अनुसार हैं । विशेषके लिए देखो टिप्पण ।
८ दशवैकालिक एवं आचारांगका पिंडेषणा-अध्ययन भाषा-अध्ययन (पण्णवणासूत्रका भाषापद) पांच महाव्रतोंका वर्णन मिलता जुलता है, एवं आचारांग अ० २४ गाथा ८ तथा दश० अ० ८ गा० ६३ समान हैं। - ९ उत्तराध्ययनके २२ वें अध्ययनकी और दशवैकालिकके दूसरे अध्ययनकी कुछ गाथाएँ।
१० नंदीसूत्र तथा समवायगत अंगसूत्रोंका वर्णन । ११ अनुयोगद्वार-सात वर आठ विभक्ति स्थानांगके अनुसार हैं। १२ श्रावकावश्यक्रम बारह व्रतोंके अतिचारादि उपासकदशाके प्रथम अध्ययनके अनुसार हैं।
१३ कल्पसूत्र-महावीरचरित्र आचारांगके अनुसार, ऋषभचरित्र जंबुद्वीपप्रज्ञप्तिके अनुसार । दशश्रुतस्कंधके ८ वें अध्ययनका परिशिष्ट तो है ही।
(नोट) स्थानांग एवं समवायांगके आधारसे कई सूत्र रचे गए हैं अतः उनके पाठ कई सूत्रोंमें पाए जाते हैं । अन्तकृद्दशांगगत अतिमुक्तकुमारका शेष वर्णन भगवतीसूत्रमें है । और भी कई सूत्रोंके पाठोंमें साम्यता है। यहां तो मात्र कुछ थोड़ा सा दिग्दर्शन कराया गया है। दैगंबरीय
१ अंगोंकी पदसंख्या आदिमें बहुत कुछ समानता है। १ देखो षट्खंडागम प्रथम भाग ।