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१० तृतीयाके बहुवचनमें देवेहि देवेभिः 'हि' के अनुरूप 'भि' ११ चतुर्थीके स्थानमें जिनाय-जिणस्य चतुर्यर्थे बहुलं छेदसि (पाणिनि.
षष्ठी १२ पंचमीके एकवचनमें 'त्' का लोप जिणा उचा १३ द्विवचनके स्थानमें देवी-देवा इन्द्रावणी-इन्द्रावरुणा
बहुवचन (नोट) इसके अतिरिक्त ऋग्वेद आदिमें प्रयुक्त वंक, वह . मेह, पुराण इ. सादि शब्द समान हैं।
संस्कृत
बहुतसे शब्द अर्धमागधी और संस्कृत में समान पाए जाते हैं। जग-'आगम' 'ऊढा' 'डिम्भ' 'ढक्का' इत्यादि ।
पालि
१ 'कम्म' 'धम्म' शब्दके तृतीयाके एकवचनमें 'कम्मुणा' 'धम्मुणा' दोनॉम होता है।
२ अर्धमागधीकी तरह पालिमें भी भूतकालके बहुवचनमें 'इंस' प्रत्यय लगना है, जैसे-गच्छिम् इत्यादि।
३ षष्ठीके स्थानमें 'स्य' के स्थानमें दोनों में 'सा' होता है। ( नोट ) इसके अतिरिक्त यहुतसी बातोंमें समानता पाई जानी है।
शौरसेनी• अर्धमागधी और शौरसेनीमें भी बहुतसी समानता है, केवल अर्धमागधीमें जहां 'त' और 'द' का लोप होता है वहां शौरसेनीमें 'द' होता है, जैसे-गन-गदि, जया जदा । 'ह' के स्थानमें 'ध' जैसे नाह-नाध । महाराष्ट्री
अर्धमागधीमें तथा महाराष्ट्रीमें बहुतसा साम्य है, चिश्वास आदि यदुनमे शब्द तथा 'ऊण' प्रत्यय दोनोंमें पाए जाते हैं । विशेषताके लिए देखो 'मुनागमे प्रथमभागकी प्रस्तावना।