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४ अलंकृत-जो उपमा उत्प्रेक्षा आदि अलंकारोंसे अलंकृत हो । ५ उपनीत-जिसमें उपनय हों। ६सोपचार-जिसकी भाषा शुद्ध और मार्जित हो । ७ मित-जिसमें अक्षर थोड़े हों और भाव अधिक हो ।
८ मधुर-जो सुननेमें अत्यन्त मधुर हो। कोई २ छ गुण भी मानते हैं-'अप्पक्खरमसंदिद्धं, सारवं विस्सओमुहं । अत्थोभमणवजं च, सुत्तं सवण्णुभासियं ॥ १ अल्पाक्षरजैसे सामायिकसूत्र, २ असंदिग्ध-जिसमें शंका के लिए स्थान न हो, ३ सारवान्-पूर्ववत् , ४ विश्वतोमुख-जिसमें चारों अनुयोगोंका समावेश हो, जैसे'धम्मो मंगलमुक्किटुं०' ५ अस्तोभक-जिसमें च वा आदि निपातोंका निरर्थक प्रयोग न हो, ६ अनवद्य-जिसमें सावद्य व्यापारका उपदेश न हो।
सूत्रके ३२ दोष-अलियमुवघायजणयं, निरत्थयमवत्थयं छलं दुहिलं । निस्सारमहियमूणं, पुणरुत्तं वाहयमजुत्तं ॥१॥ कमभिण्णवयणभिण्णं, विभत्तिभिण्णं च लिंगभिण्णं च । अणभिहियमपयमेव य, सहावहीणं ववहियं च ॥२॥ कालजतिच्छविदोसो, समयविरुद्धं च वयणमित्तं च । अत्थावत्तीदोसो, नेओ असमासदोसो य ॥ ३ ॥ उवमारूवगदोसो, णिद्देसपयत्थसंधिदोसो य । एए य सुत्तदोसा, बत्तीसा हुंति णायव्वा ॥४॥
१ अलीकदोष-जो सत्को असत् कहे, जैसे-आत्मा नहीं है। २ उपघातदोष-जो प्राणियोंकी घातका कारण हो, जैसे-वैदिकी हिंसा .... हिंसा न भवति'। ३ निरर्थकदोष-जिसका कोई अर्थ न हो। ४ अपार्थकदोष-असंबद्ध अर्थवाला । ५ छलदोष-विपरीत अर्थवाला। ६ द्रुहिलदोष-पापव्यापारपोषक। ७ निस्सारदोष-साररहित । ८ अधिकदोष-अधिक पद अक्षर मात्रा वाला। ९ हीनदोष-अक्षर पद मात्रा आदि से हीन। १० पुनरुक्तदोष-जिसमें एक ही विषयको बारंबार दुहराया गया हो। ११ व्याहतदोष-जो पूर्वापर विरोधी हो।