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चतुर्मासमें द्वितीय अंशका कार्य प्रारंभ होकर शनैः २ चलता रहा और पनवेल चतुर्मासमें सम्पन्न हुआ।
सहयोगी-मेरे अंतेवासी शिष्य सुमित्तभिक्खू ने 'पासंगियं किंचि' नामक लेख लिखकर 'सुत्तागमे' के सौंदर्यमें जो अभिवृद्धि की है और वर्णित विषयोंको स्पष्ट करके बताया है वह उल्लेखनीय है। .. मेरे अंतेवासी प्रशिष्य जिनचंदभिक्खू ने अप्रमत्त एवं जागरूक अवस्थामें संशोधनका कार्य अपने हाथमें लेकर जो सहयोग दिया है उसे तो कभी भुलाया ही नहीं जा सकता । इन दोनोंकी सेवा जीवनके अंत तक स्मृतिपथमें रहेगी। .. मुनिश्री रतनचंदजी महाराज (कच्छी) ने 'सुत्तागमे' की जो साररूप भूमिका प्राकृतमें लिखी है उनका आभार माने बिना कैसे रहा जा सकता है। आपने तो मानों सागर को गागरमें बंद कर दिया है।
पंडितवर्य श्री गजानन जोशी शास्त्री(पनवेल)ने जो प्राकृतमें "निदंसणं' लिखा है वह उनकी योग्यताका परिचायक एवं अभिनंदनीय है, और प्राकृतके अभ्यास के लिए प्रेरणा देता है।
इनके अतिरिक्त प्रगट या अप्रगट रूपमें जिन २ महानुभावोंने सहयोग दिया है उनका आभार मानता हूं।
स्पष्टीकरण-(१) कल्पसूत्रमें २४ तीर्थकरों के आंतरोंमें महावीर-निर्वाण के ९८० वर्ष पीछे सूत्रोंके लिखे जानेकी जो घटना है वह देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमणकी है, क्योंकि इतिहासकार अपने समय तकका विवरण दिया ही करते हैं। ... (२) शब्दकोश गाथाबद्ध सानुवाद तैयार हो रहा है, १११८ गाथाओंकी रचना भी हो चुकी है, अतः शब्दकोश नहीं दिया गया।
(३) अन्य उपयुक्त विषय जो कि ग्रंथके बढ़ जानेके कारण रह गए हैं वे अन्यत्र दिए जायेंगे।
अन्तिम-इस प्रकाशनमें यदि कहीं कोई भूल रह गई हो या सिद्धान्तके विरुद्ध हुआ हो तो उसका ख़ालिस हृदयसे अनन्त सिद्धों की साक्षीसे 'मिच्छामि दुक्कडं।
गच्छतः स्खलनं कापि, भवत्येव प्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समाद्धति सजनाः॥ शांतिभवन अंबरनाथ C. R. । श्रीगुरुचरणचचरीकदिनांक २१-१२-१९५४
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