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( ४ ) हेत्वर्थ कृदन्त-संबंधक भूतकृदन्त भी अव्ययमें ही सम्मिलित हैं। । (५) अम् प्रत्ययान्त समास भी अव्ययमें ही परिगणित हैं। जैसे-अहोनिसं।
(६) इकारान्त 'दिसि' आदि शब्दोंकी भी समासमें अव्यय संज्ञा होती है। यथा-दिसोदिसिं, गुम्मागुम्मि, घराघरि इत्यादि । प्रेरक रूप
(१) धातुके मूलरूपको 'अ 'ए' 'आव' 'आवे' प्रत्यय लगाकर तत्तत्कालके पुरुषबोधक प्रत्यय लगानेसे प्रेरक रूप सिद्ध होता है। । (२) धातुमें उपान्त्य 'अ' हो तो 'अ' अथवा 'ए' प्रत्यय लगाते समय 'अ' को 'आ' होता है, जैसे-हसइ-हासइ, हासेइ, हसावइ, हसावेह ।
(३) उपान्त्य 'इ' 'उ' होनेपर दोनोंको गुण होता है, यथा-बुह-बोहर, तुड-तोडइ इत्यादि।
(४) 'आवे' प्रत्यय परे होनेपर 'अ' को कहीं २ 'आ' होता है, जैसे-कारावेइ। (५) 'भम्' धातुका प्रेरक रूप 'भमाडेइ' भी बनता है।
उपरोक्त चारों प्रत्यय लगाकर सब प्रेरक रूप सिद्ध किए जाते हैं । ... इच्छादर्शक आदि अन्य प्रक्रियाएँ - सनन्त-जुगुप्सते-जुगुच्छइ (दुगुंछइ) वह निंदा अथवा घृणा करता है। • पिपासति-पिवासइ-वह पीनेकी इच्छा करता है । शुश्रूषते-सुस्सूसइ-वह सेवा करता है अथवा सुननेकी इच्छा करता है। सुस्सूसमाण व० कृ० । ' थगन्त-लालप्यते-लालप्पइ-लपलप करता है। लालप्पमाण व. कृ० । चंक्रम्यते-चंकम्मइ-बहुत चलता है।
यङ्लुगन्त-चक्रमीति-चंकमइ-बार २ चलता है। . नामधातु-दमदमायते दमदमाइ-द्मभायइ-आडंबर करता है । गुरुकायते-गुरुआइ-गुरुआयइ-गुरुके समान आचरण करता है।
स्त्री-प्रत्यय (१) अकारांत शब्दके पीछे 'डा' प्रत्यय लगानेसे स्त्रीलिंग आकारान्त शब्द बन जाता है, जैसे-बाल-बाला, अम्मा आदि।
(२) 'डी' प्रत्ययसे होने वाले रूप-सत्थवाह-सत्थवाही आदि । (३) भाव भिन्नार्थक प्रत्ययांत से 'णी' प्रत्यय होता है, जैसे-आसाविणी आदि।