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दसवें उपांग-पुष्पिकामें १० देव देवियोंका भगवान् महावीर स्वामीकी वंदना के लिए आना, गौतमस्वामीकी उनके पूर्वभवकी पृच्छा भगवान् द्वारा पूर्वभव - कथन, चन्द्र, सूर्य, महाशुक्र ( पूर्वभव में सोमिल ब्राह्मण), बहुपुत्तिया (पूर्वभवमें सुभद्रा साध्वी), पूर्णभद्र, माणिभद्र, बल, शिव और अनादित देवके पूर्वजन्मका वर्णन है ।
ग्यारहवें उपांग-पुष्पचूलिका में श्री ही आदि १० देवियोंकी पूर्वजन्मकी करणीका कथन है । इसमें १० अध्ययन हैं ।
बारहवें उपांग- वृष्णिदशा में वृष्णिवंशके वलभद्रजीके १२ पुत्र निषढकुमारादिका भगवान् अरिष्टनेमिके पास दीक्षाग्रहण, सर्वार्थसिद्धगमन, भविष्य में मोक्ष पानेका अधिकार है ' ।
चार छेदसूत्र -
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प्रथम छेद-व्यवहारसूत्रमें दश उद्देशक हैं। प्रथम उद्देश में आलोचना (Confession) विधि । द्वितीय उद्देश में सहधार्मिकके दोषित होने पर साधुका कर्तव्य । तीसरे उद्देशक में आचार्य उपाध्याय आदि ७ पदवियां किसे दी जायँ और किसे नहीं, साथ ही उनके गुणोंका विवरण । चौथे उद्देश में आचार्यादिको चतुर्मास और विहारकालमें कितने साधुओंके साथ रहना। पांचवें में प्रवर्तनी के लिए विधान चौथेके अनुसार । छठेमें भिक्षा स्थंडिल ( शौचभूमि ) वसति कहां और किसप्रकार निश्चित करना तथा अमुक २ स्खलनाओंके लिए प्रायश्चित्त । सातवेंमें दूसरे संघाड़े में से आई हुई साध्वी के साथ कैसा व्यवहार रखना और साध्वियों के लिए नियम, स्वाध्याय और पदवीदान, अमुक संयोगों में गृहस्थकी आज्ञा लेकर प्रवर्तन करना । आठवेंमें गृहस्थके मकानका कितने भाग तक उपयोग करना, पीठ फलक ( पाट पाटलादि ) की ग्रहण विधि, पात्र आदि उपकरण और भोजनका परिमाण । नववेंमें शय्यातर ( स्थान देनेवाले) का कथन, उसके मकानादिको उपयोगमै लेने न लेनेका स्पष्टीकरण, भिक्षु प्रतिमाका आराधन कैसे होना चाहिए । दशम उद्देशक में दो प्रकारकी प्रतिमा ( अभिग्रह ) तथा दो प्रकारका परिषद, पांच व्यवहार, चार जातिके पुरुष (साधु), चार जातिके आचार्य और शिष्य स्थविर एवं शिष्य की तीन भूमिकाएँ, अमुक सूत्रका अभ्यास कब आरंभ करना आदिका कथन है ।
द्वितीय छेद - बृहत्कल्पमें छ उद्देशक हैं, इसमें मुख्यतया साधु साध्वियों का १ उपांगों के संबंधमें वेबर महाशय के लेख द्रष्टव्य हैं ।