________________
४९
द्वारा भी नहीं देखे जा सकते । देखो 'हाई निकोलकी मिक्रोप्स बाई द मिलियन पेनगिन द्वारा १९४५ में प्रकाशित ' ।
१२ भगवान् महावीरने पुगलकी अपरिमेय शक्ति बताई है, जिसे आजके विज्ञानने 'एटमबम' 'अणुबम' 'उद्जनबम' आदि से सिद्ध कर दिखाया है ।
१३ जैनशास्त्रानुसार लोहेका सोनेमें परिवर्तन करना संभव है जिसे विज्ञानने भी स्वीकार किया है कि सोनेके एक परमाणु ७९ प्रोट्रोन्स ( Protrons ) और लोहेके परमाणु ३६ प्रोट्रोन्स होते हैं, यदि दोनोंकी संख्या किसी प्रकार सम कर दी जाय तो वह सोनेका परमाणु हो सकता है ।
१४ ध्यान और योगसंबंधी सिद्धान्त के लिए डा. ग्रे वाल्टरकी The living brain नामक पुस्तक देखें ।
१५ प्रसिद्ध वैज्ञानिक आस्टाइनका 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' स्याद्वादसे बहुतसा साम्य रखता है ।
१६ विज्ञानने जीव, पुद्गल, आकाश ( Space ), काल ( Time ) और धर्मास्तिकायको भी 'ईथर" के रूप में माना है ।
१७ आगम कहते हैं कि परमाणु पुद्गल कभी स्थिर और कभी चल रहता है । वैज्ञानिकोंने भी 'हाइड्रोजन' के एलेक्ट्रोनको बाहिर और भीतरके वृत्त में अनिश्चित काल तक चल विचल होते देखा है ।
१८ आगमों परमाणु अनन्त प्रकारके और अत्यन्त सूक्ष्म कहे हैं, वैज्ञानिक अनन्तता तक तो नहीं पहुंच सके फिर भी उन्होंने १४ प्राइमरी पारटीकलस् माने हैं। और वे यह स्वीकार करते हैं कि Primary Particles इतने सूक्ष्म हैं कि उनमें से कइयों को वे महाशक्तिशाली यंत्रों द्वारा भी नहीं देख सके ।
१९ जीवों का उत्पत्ति स्थान मृत शरीर ( अन्तरमुहूर्तके बाद ) जीवित प्राणीका अंग और पुद्गल भी हो सकता है ऐसा जैन शास्त्र मानते हैं । जिसे किसी अपेक्षा से चौथी हाइपोथिसिस ( Hypothesis IV ) द्वारा वैज्ञानिकोंने भी स्वीकार किया है ।
२० शास्त्रों में वर्णित अवगाहना आदि को कई लोग असंभव मानते हैं, उन्हें १० जनवरी १९५४ के संडे स्टेण्डर्ड में रेडिएशन के बारेमें फ्रैंक चेलेंजर द्वारा लिखित लेख देखना चाहिए । रेडिएशनसे प्रतिवर्ष सवा इंचके हिसाब से उंचाई में वृद्धि बताई है । यदि अवसर्पिणीके छठे आरेका मनुष्य उत्सर्पिणीके सुषमा काल तक जिसका अंतर १० कोडाकोड़ी सागरोपम होता है तीन गाऊकी ४ सुत्ता० प्र०