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भेद है। वौद्धोंने 'रायपसेणइय' का कितना अनुसरण किया है इसका पूरा हाल दोनों सूत्रोंका अध्ययन करने से ही ज्ञात हो सकता है। ___ २ उत्तराध्ययनसूत्रकी बहुतसी गाथाएँ शाब्दिक परिवर्तनके साथ धम्मपदमें पाई जाती हैं । जहां कुछ परिवर्तन भी है वह केवल नाम मात्र है, परन्तु विषय चर्चामें कोई अन्तर नहीं है।
उदाहरणार्थ(१-४) अकोसिज्जा परे भिक्खुं, न तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ वालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ उ० अ० २ ॥
एवं २५-२६-२७ वी गाथाओंके स्थानपर धम्मपद में निम्नलिखित गाथाएँ पाई जाती हैं-पठवी समो नो विरुज्झति, इन्दखीलूपमो तादि सुब्बतो। रहदोऽव अपेतकद्दमो, संसारा न भवन्ति तादिनो ॥ ६ ॥ ध० अरिहंतवग्ग ॥ खंती परमं तपो तितिक्खा, निब्बाणं परमं वदन्ति बुद्धा । न हि पब्बजितो परूपघाती, समणो होति परं विहेठयन्तो ॥ ६ ॥ ध० बुद्धवग्ग ॥ सुत्वा रुसितो बहुं, वाचं समणाणं पुथुवचनानं । फरसेन ने न परिवज्जा, नहि संतो परिसेनि करोति ॥ ९३२ ॥ ॥ मुत्तनिपात ॥ न ब्राह्मणस्स पहरेय्य, नास्स मुञ्चेथ ब्राह्मणो । धी ब्राह्मणस्स हन्तारं, ततो धि यस्स मुश्चति ॥ ७ ॥ ध० व० २६ ॥
(,) जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे। एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ३४ ॥ उ० अ० ९ ॥ यो सहस्सं सहस्सेन, संगामे मानुसे जिने । एकं च जेय्यमत्तानं, स वे संगामजुत्तमो ॥ ४ ॥ ध० सहस्सवग्ग ॥ (६) मासे मासे उ जो बालो, कुसग्गेणं तु भुंजए । न सो मुयक्खायधम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं ॥ ४४ ॥ उ० अ० ९ ॥ मासे मासे कुसग्गेनं. बालो भनेथ भोजनं । न सो संखतधम्मानं, कलं अग्धति सोलसिं ॥ ११ ॥ध० बालवग्ग ॥ (७) जहा पउमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तं कामेहि, तं वयं वूम माहणं ॥ २७ ॥ उ० अ० २५ ॥
१ देखो दीघनिकाय M. T. W. राइस डेविड द्वारा सम्पादित पाली टेक्स्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पृ० ३१६ से ३५८ पायासी-सुत्तं । हिंदीभाषाभाषी राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनुवादित महाबोधि ग्रंथमालाकी ओर से प्रकाशित दीघनिकाय पृ० १९९ से २११ तक पायासी-राजझसुत्त देखें ।