Book Title: Suttagame 02
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti

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Page 14
________________ ११ आभार मानते हैं, साथ ही सूत्रोंके निकले हुए अलग २ प्रकाशनोंपर अथवा प्रथम अंशपर जिन २ मुनिवरोंने अपनी २ शुभ सम्मतिएँ भिजवाई हैं हम उनके अनुगृहीत हैं । सहधर्मि महानुभावोंसे निवेदन है कि वे इस पवित्र कार्यमें सहयोग देकर हमारे उत्साहको बढ़ाएँ। हम हैं जिनवाणीके सेवाकांक्षी, प्रधान-मास्टर दुर्गाप्रसाद जैन B. A. B. T. मंत्री-बाबू रामलाल जैन तहसीलदार 'सुत्तागमे' पर लोकमत (२५) कवि मुनि श्री नानचंद्रजी म. सायला ५।२।५४ स्नेही भाई श्रीशंभुलाल कल्याणजी ! तमारा तरफथी पोष्टकार्ड अने बीजे के श्रीजे दिवसे 'सुत्तागमे'- दळदार बोल्युम पोष्टपार्सलथी मल्यु. पुस्तक आवी रीते सुंदर आकारमा ( अगियार अंग भेगा ) बंधाएल हशे एनी कल्पना पण न हती. हुँ एम मानतो हतो के बधा पुस्तको छुटा छूटा हशे.. पण आ तो घणुं सुंदर काम थयेल छे. आमांना कागळो पण सारा छे. आ ऊपर थी एम चोक्कस थाय छे के शास्त्रोद्धारनुं कार्य गृहस्थिओ करतां कोई सुविहित अने कर्मनिष्ठ साधु करे तो ते केबुं सर्वोत्तम निपजी शके छे ! आवा कार्योमा साधुने जरूर अपवाद सहन करवा पड़े छे पण हिम्मत होय तो परिणामे एनी योग्य कदर जरूर थाय छे. अस्तु ! श्रीफूलचंद्रजी म० ने अमारा अभिनंदन पहोंचाडशो. आ पद्धति अमोने गमी छे. एकंदर सूत्रोना मूळपाठोनुं प्रकाशन जरूरी हतुं. श्रीफूलचंद्रजी महाराजे आ खोट पूरी करी छे. ता. १९-१-५४ सायला (२६) श्रीशामजी स्वामी जेतपुर २४-११-५३ ...मुत्तागमे ए नाम, ११ अंगोना मूळपाठवाळू मजबूत वाइंडिंग साथे मंगल पुस्तक बुक-पोष्ट थी मोकळेल ते मल्युं छे, अने ते पवित्र पुस्तक महाराजश्रीनां करकमळमां बहुमानपूर्वक स्थापित कयु छे. ते मंगल पुस्तकनुं दर्शन करी महाराजश्री घणाज हर्षित थया छे. शासनपति महावीर प्रभुना पंचम गणधरे ११ अंगोनी गूंथणी करी त्यार थी अत्यारसुधीमा ११ अंगोनुं एकज पुस्तक बहार पडेल होय ते मां आ पहेलो ज शुभ प्रसंग बन्यो छे, अने ते शासन सेवा रसिक मुनि श्री फूलचंदजी स्वामीनी पुनीत भावनाने ज आभारी छे. x x x (२७) चरित्ररूपी सुगंधी वडे वासित पुष्प अने चंद्र समान शीतल खभाव

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