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(घ) उत्तम क्षमा-निर्लोभता-सरलता-मृदुता-लाघवता-शौच संयम-नपत्याग-ज्ञान-ब्रह्मचर्यात्मक धर्मको धारण करना। (ङ) झल-चोरी-कुशील-मानवद्रोह-विश्वासघान-द्रोह-रिश्वत दना लेना
दुर्व्यसन आदि निन्धकार्योसे ग्लानि करना अर्थात् उनी त्यागना । (८) यह संसार स्वयं सिद्ध अर्थात् अनादि अनंत है इसका का ही कोई
नहीं है। (९) आत्मा Soul और परमात्मा God में केवल विभाव और स्वभावका
अंतर है। जो आत्मा रागद्वेषरूप विभावको छोड़कर निजम्वभावरूप
हो जाता है उसे ही परमात्मा कहते हैं। (१०) ऊंच-नीच-छूत-अछूतका विकार मनुष्य का निजका किया हुआ विकार है, वैसे मनुष्यमात्रमें प्राकृतिक भेद कुछ भी नहीं है।
मंत्री