Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 11
________________ 10 प्राक्कथन इस पुस्तक के आधार हैं - परमतारक परम श्रद्धेय तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्य देवेश श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा। आज से लगभग तीस साल पहले मेरे धर्मपिता तुल्य पू.आ.श्री.विजय गुणयशसूरीश्वरजी महाराजा तथा सन्मार्गदायक पू.आ.श्री.विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा को बम्बई-लालबाग वंदन करने के लिए जाने का अवसर हुआ। उन दिनों में तपागच्छाधिराज पूज्यश्री के प्रवचन ‘ललितविस्तरा' ग्रंथ पर चल रहे थे। इन प्रवचनों को सुना, परन्तु तब मेरी बुद्धि उतनी विकसित नहीं थी कि, इन व्याख्यानों को पूरी तरह समझ सकुँ । तो भी इस ग्रंथ के आधार से 'नमोऽत्थुणं' आदि सूत्रों का अर्थ सुनते हुए मुझे अत्यंत आश्चर्य हुआ। मुझे लगा, एक शब्द के क्या इतने एवं ऐसे अर्थ हो सकते हैं ? सुषुप्त मन में तब से उन सूत्रों के अर्थ जानने की इच्छा प्रबल होती रही । कालक्रम से सुयोग्य गुरु का सान्निध्य मिला। अनेक साधकों की सहायता मिली। गुरुकुलवास में उन ग्रंथों के अध्ययन की सुविधा मिली । उन ग्रंथों का अभ्यास करते हुए जो कई विशेष अर्थ जानने को मिले, उनके स्मरण के लिए एवं समुदाय के साधकों के उपयोग में आए इसलिए सूत्रों के अर्थ में निहित विशेष विषय के ऊपर विस्तृत नोंधपोथी तैयार की । अभ्यासी वर्ग को ये नोंधपोथी उपकारक एवं उपयोगी लगने से बहुतों ने इसकी नकल की। कितनी ही श्राविका बहनों खास तो श्रीमती सरलाबेन शहाने इन नोट्स को पुस्तकाकार देने का आग्रह किया। अनेकों की विनति, मार्गदर्शन आदि को लक्ष्य में रखकर, मेरी बुद्धि अनुसार चैत्यवंदन - देववंदन में आने वाले सूत्रों का विवेचन ललितविस्तरा आदि ग्रंथों के आधार पर तैयार करने का मैंने निर्णय लिया। तैयार किए हुए वे नोट्स ही संस्कारित हो सूत्र संवेदना भाग-२ (गुजराती) के रूप में आज प्रकाशित हो रहे हैं।

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