Book Title: Sutra Samvedana Part 02
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 10
________________ अवस्था में पहुँचता है - शुद्ध भावमय बन जाता है एवं परमात्मा के गुणों के साथ तादात्म्य साध लेता है, तब तो जागृत आत्मा: सामायिक की उच्च अवस्था में स्थिर हो जाती है। चैत्यवंदन की एक क्रिया भी यदि भावपूर्वक एवं संवेदन सहित हो तो उसमें आत्मा को उभार लेने की अमोघ शक्ति होती है। मुझे श्रद्धा है कि बिखरी शक्ति को दीप्त करने के लिए इस पुस्तक का वाचन, मनन एवं निदिध्यासन बहुत उपकारी सिद्ध होगा। ऐसी अनमोल पुस्तक तैयार करके देने के लिए विदुषी पू. साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी को अभिनंदन सहित मेरा वंदन एवं उसके परिशीलन के लिए सभी श्रावक-श्राविकाओं को एवं साधकों को निवेदन । 'सुहास' - चन्द्रहास त्रिवेदी ६४, जैननगर, एलिसब्रिज, १९-१०-२००३ अहमदावाद-६. - श्री चन्द्रहास त्रिवेदी गुजरात के एक अग्रगण्य लेखक हैं। जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी आपने जैन दर्शन का विशद् अभ्यास किया है। दर्शन शास्त्र, सामाजिक परिस्थिति, जैनधर्म, काल्पनिक नवलकथा इत्यादि विभिन्न विषयों पर आपका वर्चस्व है। सूत्र संवेदना श्रेणी का परिशीलन करना आपका प्रिय विषय रहा है। - सं.

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