Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha Author(s): Bramharshi Muni Publisher: Ravji Desar View full book textPage 3
________________ पुस्तकप्रगट प्रयोजनार्थे बे बोल. प्रिय वाचकबंद! श्रा अनाद्यनंत संसारनी अंदर जब भ्रमण करता जीवने मनुष्यपणुं-घार्यदेश-श्रने भार्य कुळनी प्राप्ति थवी, तेमज सुदेव,सुगुरु, सुधर्मनो संयो. ग मळवो ए अति दुर्खन डे! कदाचित् पूर्वकृत पुन्य नी प्रबळतावडे ते प्राप्त थाय तथापि सुदेव, सुगुरु, . धर्म उपर प्रतीति थवी महान् उर्सन डे अने जो ते उपर पूर्ण प्रतीति थाय तो अवश्य जीवर्नु कल्याण याय ने एमां जरा पण शक नथी! था पंचम काळना प्रजावथी बहुश्रुत पूर्वधर महाराजालना बिरहथी, तथा धर्ममार्गमा अनेक मत मतांतर रूप फांटा पडवाथी अने शुद्ध प्ररूपक पुरुषो घणाज थोडा दोवाथी, उन्मार्गदेशक एटखे के उत्सूत्रनी प्ररूपणा करी स्वमत स्थापन करवामां कटिबक थयेला, सूत्रनो जय त्यजी द पोतानी वा मुजब नवी नवी आचरणा स्थापन करी मात्र मारूं तेज साचुं अने बीजा कहे ते खोटुं, श्राम बेधडक बोलवावाळा बटु जन थर जवाने सीधे या विषम समयमां कोनो कहेलो धर्म-बोध जिनाज्ञा सहित धने कोनो कहेख धर्म-योष जिनाझा रहित ? श्रावीशंकाने जव्य जीवोना हृदयस्थळमां जन्म मळे ए स्वास्ताविकज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 94