________________
। २२ ) व्याकुल हुए प्रद्यम्न कुमार को नारद मुनि ने आकर संबोधन किया और वे उसे उसकी सच्ची माता रुक्मिणी के यहां ले गये।
यही कथानक जिनसेन कृत हरिवंश पुराण (४३-४७) में इस प्रकार वर्णित है। प्रद्युम्न का जन्म होते ही उसे उसके पूर्व जन्म का बैरी धूमकेतु नामक असुर हरकर ले गया और खदिरावटी में तक्षशिला के नीचे छोड़कर चला गया । अकस्मात् मेघकूट नगर का राजा कालसंबर नामक विद्याधर अपनी स्त्री कनकमाला के साथ वहां से निकला और उस बालक को देखकर वे उसे उठा ले गये। उन्होंने उसका नाम प्रद्युम्न रखा । उसके युवक होने पर कनकमाला उस पर मुग्ध हो गयी और प्रेमदान की प्रार्थना करने लगी। किन्तु प्रद्युम्न कुमार ने यह स्वीकार नहीं किया। इस पर क्षुब्ध होकर कनकमाला ने अपने कक्ष, वक्षःस्थल व स्तनों को नखों से नोच डाला और पति से प्रद्युम्न के दुराचार की शिकायत की। कालसंवर ने रुष्ट होकर अपने पांच सौ पुत्रों को आज्ञा दी कि प्रद्युम्न को चुपचाप मार डाला जाय । वे उसे कालाम्बु नामक वापिका पर ले गये और वहां जलक्रीड़ा करने का उससे आग्रह करने लगे। प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा सब बात जान ली और स्वयं वापी में न जाकर एक अपने मायामयी शरीर से वापी में कूद पड़ा। उन पांच सौ कुमारों ने उसके ऊपर कूदकर मार डालने का बहुत प्रयत्न किया, किंतु वे सफल नहीं हुए, प्रत्युत प्रद्युम्न ने उन सभी को वहीं कील दिया, केवल एक को घर खबर देने को भेजा। समाचार पाकर कालसंबर अपनी समस्त सेना सहित वहां आया, किंतु प्रद्युम्न ने अपनी विद्या के प्रभाव से उसे बांध कर एक शिला पर रख दिया। उसी समय वहां नारद मुनि आ उपस्थित हुए और उन्होंने सब को समझा-बुझा कर शांति करायी। प्रद्य म्न ने सबको बन्धन मुक्त किया और कालसंवर की अनुमति लेकर अपने माता-पिता के दर्शन निमित्त प्रस्थान किया। यही कथानक गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (७२) व महासेन कृत प्रद्युम्न चरित (८) में भी आया है। इस कथानक में और बातें तो प्रायः विष्णुपुराण के समान हैं, किंतु प्रेमासक्त रानी की प्रद्युम्न को मरवा डालने की कुचेष्टा नयी है।
हरिभद्र-कृत समरादित्य कथा (५वे भव) में एक उपाख्यान आया है। सेतविया नामक नगरी के राजा यशोवर्मा का पुत्र सनत्कुमार एक बार अपने पिता से रुष्ट होकर घर से चला गया। ताम्रलिप्ति के राजा ईशानचन्द ने उसका स्वागत किया और उसे अपने नगर में रखा। एक बार सनत्कुमार अपने मित्र वसुभूति के साथ राजकुमारी विलासवती के भवन के समीप से निकला। उसे देख राजकुमारी उस पर मोहित हो गई और वह राजकुमारी पर। यह प्रेम-प्रसंग चल ही रहा था कि एक दिन रानी अनंगवती ने उसे अपने पास बुलवाया और स्वयं उससे प्रेम याचना की। सनत्कुमार ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह अपने निवास को लौट आया। कुछ काल पश्चात् राजा का विशेष विश्वासपात्र नगर-रक्षक विनयधर उसके पास आया और बोला कि वह सनत्कुमार के पिता के ही राज्य में रहने वाले एक कुलीन शूरवीर वीरसेन का पुत्र है और मेरे पिता के ऊपर तुम्हारा और तुम्हारे