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( २० ) इसी प्रकार की एक और कथा बन्धनमोक्ष जातक (१२०) में आयी है। बोधिसत्त्व ने पुरोहित के घर जन्म लिया और यथासमय स्वयं राजपुरोहित बना। एक बार राजा विद्रोह-दमन के लिए बाहर गया । अवसर पाकर रानी ने राजपुरोहित से प्रेम की माँग की। उसके अस्वीकार करने पर रानी ने अपने शरीर को नोंच खसोट डाला और मलिन वस्त्र पहन कर पड़ रही। राजा के आने पर उसने राजपुरोहित को दोषी ठहराया । राजा ने उसे बाँधकर वध स्थान पर ले जाकर सिर काट डालने का आदेश दे दिया। पुरोहित ने राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की और उन्हें सप्रमाण सच्ची बात बतला दी और रानी के प्रति राजा के क्रोध को यह कहकर शान्त किया कि स्त्रियों में स्वभावतः ही कामुकता अधिक होती है।
संस्कृत बौद्ध साहित्य में भी इस प्रकार का एक आख्यान ध्यान देने योग्य है। दिव्यावदान नामक ग्रंथ के शार्दूलकर्णावदान नामक ३३ वें अवदान में कहा गया है कि
एक बार भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्य आनन्द श्रावस्ती नगरी में भिक्षा के लिये गये । लौटते समय उन्हें प्यास लगी। एक कुएँ पर कोई युवती पानी भर रही थी। उससे आनन्द ने पानी माँगा। युवती ने अपनी जाति चाण्डाल बतलायी। आनन्द ने कहा मैं तुम्हारी जाति नहीं पूछता, पानी पीना चाहता हूँ । कन्या ने पानी पिला दिया। वह आनन्द के रूप और गुणों पर मोहित हो गयी। घर आकर अपनी माता से आनन्द को स्वामी के रूप में पाने की अपनी इच्छा प्रकट की। माता महाविद्याधारी थी, उसने मंत्र के प्रभाव से आनन्द के चित्त को भ्रान्त कर दिया और वह उस चाण्डाली के घर जा पहुँचा, चाण्डाल कन्या प्रकृति ने शय्या तैयार कर आनन्द को अपने पास बुलाया। यह देख आनन्द रोने व भगवान बुद्ध का स्मरण करने लगा। बुद्ध ने अपनी मंत्र-विद्या से चाण्डाली के मंत्र प्रभाव को दूर कर दिया। और आनन्द अपने विहार में लौट आया, किन्तु प्रकृति का मोह दूर नहीं हुआ और वह प्रतिदिन भिक्षा के समय आनन्द का पीछा किया करती थी। बुद्ध ने उस कन्या को अपने पास बुलवाया और भिक्षुणी की दीक्षा दे दी। इससे नगर के ब्राह्मणों में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ। राजा प्रसेनजित को भी यह खबर मिली और वे अन्य ब्राह्मण-क्षत्रिय आदि नागरिकों सहित बुद्ध के पास गये । बुद्ध ने उन्हें चाण्डाल नरेश त्रिशंकु की कथा सुनायी जिसके अनुसार उसने अपने पुत्र शार्दूलकर्ण का विवाह पुष्करसारी नामक ब्राह्यण की कन्या से कराना चाहा। स्वभावतः पुष्करसारी ने इसका विरोध किया। किन्तु जब त्रिशंकु ने जाति-भेद की निरर्थकता तथा कर्म सिद्धान्त की अनिवार्यता का व्याख्यान किया, तब पुष्करसारी ने त्रिशंकु के ज्ञान से प्रभावित होकर उक्त विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। बुद्ध ने यह भी बतलाया कि पुष्करसारी की वही कन्या इस जन्म की चाण्डाल-कन्या प्रकृति है। शार्दूलकर्ण ही आनन्द है और वे स्वयं भी वही त्रिशंकु हैं।
___ पुराणों में अनेक ऐसे आख्यान पाये जाते हैं जहाँ कामिनी स्त्रियों की ओर से अनुचित प्रेम के प्रस्ताव किये गये और नीतिमान पुरुषों ने उन्हें ठुकरा दिया,