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( २१ ) जिसके फलस्वरूप उन्हें कभी-कभी जीवन का संकट भी भोगना पड़ा। इस सम्बन्ध में विष्णुपुराण (५,२७) का यह आख्यान उल्लेखनीय है:
कामदेव ने कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कुमार के रूप में जन्म लिया। जन्म से छठे दिन ही कृष्ण के शत्रु शम्बरासुर ने बालक का अपहरण कर उसे लवण समुद्र में पटक दिया। वहाँ उसे एक मत्स्य ने निगल लिया। वह मत्स्य मछुओं द्वारा पकड़ा गया और शम्बर के ही भोजनालय में पहुँच गया। मत्स्य के उदर से निकले कुमार को देखकर आश्चर्य चकित हई शम्बर की पत्नी मायावती को नारद ने उसका सब वृत्तान्त बतला दिया। उसने उसे पुत्रवत् पाला। किन्तु जब वह युवक हुआ तो मायावती उस पर मोहित हो गयी और उसने नाना प्रकार से उसे प्रेरित करने की चेष्टा की। तथापि प्रद्युम्न किसी प्रकार भी उसके अनुचित प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हुआ। तब मायावती ने उसे उसके कृष्ण-रुक्मिणी का पुत्र होने तथा शम्बर द्वारा अपहरण आदि का सब वृत्तान्त सुना दिया। इस पर प्रद्युम्न बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने काल शम्बर को मार डाला और मायावती को लेकर अपने पिता के घर आ गया, क्योंकि मायावती ने उसे यह भी बतलाया कि वह उसकी पूर्वजन्म की पत्नी रति ही है। यही कथानक भागवत (१०,५५ आदि) में भी आया है।
यह कथानक वसुदेवहिंडी (पढ़िया) में निम्न प्रकार पाया जाता है। प्रद्युम्न कुमार के जन्मते ही उसे पूर्व जन्म का वैरी धूमकेतु नामक ज्यौतिषी देव उठा ले गया और भूतरमण नामक अटवीं में शिलातल पर यह सोच कर छोड़ गया कि वह सूर्य की गर्मी से झुलसकर मर जायगा। किन्तु कालसंवर और कनकमाला विद्याधर पति-पत्नी वहां से निकले और बालक को उठा ले गये। उन्होंने उसका नाम प्रद्युम्न रखा। युवा होने पर कनकमाला उस पर आसक्त हो गई। प्रद्युम्न के अस्वीकार करने पर वह रुष्ट हा गयी और कंचुकी से राजा को कहलवाया कि प्रद्युम्न दुष्ट है, मेरा उल्लंघन करना चाहता है, अतः उसे दण्ड दिया जाय । राजा को प्रद्युम्न के विषय में भरोसा था, अतः उक्त बात सुनकर भी कुपित नहीं हुआ। तब कनकमाला ने अपने पुत्रों से कहा कि वे उस दुराचारी का शीघ्र विनाश करें। दोनों पुत्रों ने स्वीकार किया। उन्होंने कालाम्बुक वापी में एक शूल गड़ाया
और प्रद्युम्न से कहा चलो उसमें स्नान करें। प्रद्युम्न ने कहा भाई तुम लोग जाओ और मज्जन करो, जननी के द्वारा दूषित मेरे मज्जन से क्या ? उन्होंने कहा देवी द्वारा रोष में कही बात पर कौन विश्वास करेगा चलो स्नान करें। यह कहकर वे उसे ले गये और उसे बीच में करके वापी में गिरा दिया। प्रद्युम्न शूल में छिदकर रह गया। उसने प्रज्ञप्ति विद्या का स्मरण किया जिससे उसका शूल से उद्धार हो गया। उसने वापी से निकल कर घर जाते हुए भाइयों को ललकारा और युद्ध में उन्हें मार गिराया। पुत्रवध की बात सुनकर राजा कुपित हुआ, किन्तु मंत्रियों ने समझा-बुझाकर उसे शान्त किया। इधर भ्रातृ-वध के शोक से वयं