Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ ११ आ मुद्रित स्वरूपे गोठवी आपवानी जवाबदारी पण तेओओ ज ट्रस्टीगणनी विन तिथी स्वीकारी, आ बधानु परिणाम ते प्रस्तुत ग्रथ. श्री हेमचन्द्राचार्य ने तेमनी कृतिओना विद्यार्थी ओ अने व्याख्याकारो प्रत्येक सेके मळये ज गया छे. अने छेल्ला दोढ सैकामां तो तेमना साहित्यने वैज्ञानिक सशोधन-पध्धतिथी मूलवनास प्रो. पीशल, प्रो. मुरलीधर बेनरजी, प्रा. रामानुज स्वामी, प. बेचरदास दाशी जेवा अनेक सशोधका सांपड्या छे, जे झळहळती विद्वत्ख लामां डा. हरिवल्लभ भायाणीनु स्थान निश्चितपणे विशिष्ट छे. मने विश्वास छे के बराबर आ ज रीते, विद्वद्भाग्य गणी शकाय तेवा प्रस्तुत ग्रथने पण, तेना धारणने अनुरूप विद्यार्थी ओ अने विद्वान रसिक वाचका मळी ज रहेशे. ___अने छेल्ले, डॉ. भायाणी भाषाशास्त्रना अधिकारी पंडितजन छे, अने हुए विषयना हजी विद्यार्थी पण नथी. आ स्थितिमा भाषाशास्त्रीय समस्याओनी चर्चा करता आ ग्रथना आमुख लेखे मारे लखवानु होय, ए स्थिति मारा माटे मूझवण भरेली ज नहि, पण क्षोभजनक पण छे. परंतु, श्री हरिवल्लभभाईना आग्रह आगळ मारो इन्कार लाचार ठो, अने हु आ गुस्ताखी करी बेठो ! विद्या अमारु साधर्म्य छे, ए मोटु आश्वासन छे. श्री हरिवल्लभमाई पासेथी आवां वधु ने वधु संशोधनो आपणने मळतां रहो, एवी शुभकामना व्यक्त करवामां मारे। स्वार्थ पण छे, अने विद्वज्जगतनो लाभ पण. -शीलचन्द्रविजय गोधरा पोष वदि ६, २०४६ ता. १७-१-१९९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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