Book Title: Studies in Desya Prakrit Author(s): H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 12
________________ 'देसीसहस गहा' तेम ज 'रयणावली' जेवां नामाथी पण ओळखाती आ कृति श्रीहेमाचायनी अति विशिष्ट अने प्राकृत भाषाओना अभ्यासीओ माटे अति मूल्यवान कृति छे. वस्तुतः आपणे त्यां व्यापक रूपमा अने खास करीने जैन समाजमां, प्राकृत भाषा. साहित्यनु अध्ययन तेम ज संशोधन लगभग नामशेष बन्यु छे, बल्के प्राकृत साहित्य प्रत्येनी रुचि पण आसरी रही छे, तेवी स्थितिमां, आ ग्रंथनु योग्य मूल्यांकन करवु अशक्य छे. अने मूळ ग्रथनी ज उपेक्षा थती होय त्यारे, ते ग्रंथ उपर थतां आवां मूल्यवान संशोधनानी तो शी वले थाय ए न कल्पी शकाय तेवु नथी. परतु साचा अने अधिकारी विद्वज्जननी विद्याप्रवृत्ति मुख्यत्वे 'स्वान्तः-सुखाय'ना दृष्टिबिदुने ज वरेली होय छे. विद्या ज तेमनु ध्येय होय छे, अने विद्या ज तेमनु जीवन. अने तेथी ज तेमना स्वाध्याय/सशोधननु मूल्यांकन थवा विशे तेमने लेश पण फिकर नथी होती, अने ए साथे ज आ प्रकारना कार्यनी सार्थकता अने उपयोगिता विशे अंदेशो पण नथी होतो. तेपने मन निरवधि काल अने विपुल पृथ्वीतलने विशे क्यारेक ने क्यांक अवश्य आवां कायेनो उपयोग अने महिमा समुचित रीते थशे ज, तेवी निर्मल श्रद्धानी ज्योत अखड प्रज्वलती ज रहे छे. कदाच, आ श्रद्धा ज तेमनु प्रेरक बळ बनी जती हशे. . ... हरिवल्लभ भायाणी, गुजरातना विश्वव्यात भाषाविद अने सशोधक विद्वजन, आवाज साचा अने अधिकारी विद्वान छे. तेमना विषयमां, तेमनी हरोळमां मूकी शकाय तेवा विद्वान, गुजरातमां तेो नहि ज, पण भारतमां पण, कदाच ज हशे. प्राकृत अने देश्य भाषासाहित्यना संशोधनक्षत्रे तेमनु प्रदान जेटलु मौलिक तेटलुज वैज्ञानिक पण छे. आवा विद्वज्जने श्री हेगाचार्यनी देशीनाममाला' परत्वे, अर्थात् दश्य शब्दोनां अर्थ घटन, व्युत्पत्ति, प्रयोग, स्वरूप वगैरेने लगती विविध समस्याओ अने तेना उकेलनी दिशामां जे ऊंडु अने किंमती सशोधन कयु छे, ते तेमना अनेक लेखनिबधामां तथा सशोधन-व्याख्यानोमां छूट छवायु पथरायेलु छे. आ बधु साहित्य एक स्थळे एकत्र करीने तेने ग्रथाकारे प्रस्तुत करवामां आवे ते जिज्ञासुओ माटे घणो लाभ थाय, एवो विचार डा. कनुभाई शेठ द्वारा मारा जाणवामां आव्या. मने थयु के श्री हेमचन्द्राचार्यनी स्मृतिमां रथपायेला ट्रस्टना उपक्रमे, श्री हेमचन्द्राचायना ज ग्रंथना सदर्भमां रचायेला आ शे।धपत्रोना संचय मुद्रण पामे तो केवु रूड बस, पछी तो ट्रस्टना कार्यकर भाईओने वात करतां तेमनी स्वीकृति मळी हरिवल्लभभाईने वात जणावतां तेमनी संमति तो मळी ज, पण साथे साथे संचयने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 316