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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुबाद ॥ ४८६॥
४ स्थानस्नध्ययने उद्देश ३ आहरममेदाः
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रूप संबंधी व्याप्तिना स्मरण पछी जे मान-ज्ञान थाय छे ते अनुमान, जेम धूमाडाने जोवाथी अग्निनुं ज्ञान थाय छे, ३ उपमावडे समानपणानुं जे ज्ञान थर्बु अर्थात् बळद वो रोझ छे ते उपमान, अने आप्तपुरुषद्वारा कहेवायलं वचन ते आगम. अथवा हेतु चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ धूमादि हेतुरूप वस्तु छे तो अग्नि विगेरे साध्य वस्तु छे, ते अस्तित्वअस्तित्व हेतु, २ जो अग्नि विगेरे वस्तु छे तो तेथी विरुद्ध शीत विगेरे वस्तु नथी ते अस्तित्वनास्तित्व हेतु, ३ अग्नि विगरे नथी माटे शीतकाळमां ठंडी विगेर छे ते नास्तित्वअस्तित्व हेतु अने ४ वृक्षत्वादि नथी तेथी शाखा विगेरे पण नथी ते नास्तित्वनास्तित्व हेतु. (सू०३३८)
टीकार्थः-पांच सूत्रोनी व्याख्यामां जे छते दार्शतिक अर्थ जणाय छे ते ज्ञात-दृष्टांत, अहिं अधिकरणमा 'क्त' प्रत्यय करवाथी 'ज्ञात' शब्द सिद्ध थाय छे. साधन( हेतु )ना सद्भावमां साध्यनो अवश्य सद्भाव छ अथवा साध्यना अभावमा साधननो अवश्य अभाव होय छे. आ उपदर्शन लक्षण छे. कयु छ के-"माध्यवडे हेतुनो बोध थाय छे अने साध्यना अभावमा साधननो बोध थतो नथी. जेमां दृष्टांत कहेवाय छे ते साधर्म्य अने वैधर्म्यरूप वे प्रकारे छे." साधर्म्य दृष्टांत अर्हि अग्नि छ, धूमथी जेम महानस-रसोडामां अने वैधर्म्य दृष्टांत तो अमिनो अभाव छते धूमाडो होतो नथी, जेम जलाशयमा अग्नि होतो नथी. अथवा आख्यानक-कथानकरूप दृष्टांत ते चरित्र अने कल्पितना भेदथी चे प्रकारे छे. तेमां चरित्र आ प्रमाणे-निदान(नियाj) दुःखने माटे छे, ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीनी जेम. कल्पित आ प्रमाणे-प्रमादवाळाओने यौवनादि अनित्य छे एम बताव, जेम पांडु (धोळा) पत्रे-पांदडाए किशलय-कुमळां पत्रोने कछु, ते आ प्रमाणे
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४॥ १८६॥
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