Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 445
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mroxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx नारा एवा चार सो वादी मुनिओनी उत्कृष्टी वादीसंपदा हती. (मू०३८२) नीचेना चार कल्पो अर्द्धचंद्राकार संस्थित कहेला लेते आ प्रमाण-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार अने माहेंद्र. वचला चार कल्पो परिपूर्ण चंद्राकारे संस्थित कहेला छ, ते आ प्रमाणे-ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र अने सहस्रार. उपरला चार कल्पो अर्द्धचंद्राकारे संस्थित कहेला छे. ते आ प्रमाणे-आनत, प्राणत, आरण अने अच्युत. (मू० ३८३ ) चार समुद्रो भिन्न भिन्न रसवाळा कहेला छ, ते आ प्रमाणे-१ लवणोद-मीठाना जेवा पाणीवाळा, वारुणोद-दारुना जेवा पाणीवाळो, क्षीरोद-दूधना जेवा पाणीवाळो अने घृतोद-घृतना जेवा पाणीवाळो छे. (सू० ३८४) चार आवर्त्त-भ्रमण कहेला छे, ते आ प्रमाणे-समुद्रमा चक्रनी जेम पाणी, भमबुं ते खरावर्त्त, पर्वतना शिखर पर चडवाना मार्गरूप आवर्त ते उन्नतावर्त, दडाने गुंथेल दोरीनी जेम आवत्तं ते गूढावर्त अने मांसादि माटे पक्षीओन जे भ्रमण ते आमिषावर्त. आ दृष्टांत चार कपायो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-खरावत समान क्रोध, उन्नतावर्त्त समान मान, गूढावर्त समान माया अने आमिषावर्त समान लोभ छे. खरावर्त समान क्रोधने प्राप्त थयेल जीव-क्रोधना उदयवाको जीव काळ करे छते नैरयिकोने विषे उत्पन्न थाय छे, उन्नतावर्त समान मानना उदयमां, गूढावर्त समान मायाना उदयमां अने आमिषावर्त समान लोभना उदयवाळो जीव काळ करे छते नैरयिकोने विषे उत्पन्न थाय छे. (सू० ३८५) टीकार्थ:-' उप्पाये' त्यादि० सूत्र सरळ छे. विशेष ए के-चौद पूर्वोमा प्रथम उत्पाद नामर्नु पूर्व छ, तेनी चूलाआचारना अग्रभागोनी जेम तद्रूप वस्तुओ अर्थात् बोधविशेषो अध्ययननी माफक चूलावस्तुओ छे. (सू० ३७८) उत्पाद पूर्व काव्य छे माटे काव्यसत्र कहेल छे, ते सुगम छे. विशेष एके-काव्य एटले ग्रंथ.१ गद्य-छंदमा नहि बंधायेल-शस्त्रपरिज्ञा अध्ययननी जेम, For Private and Personal Use Only

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