Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 371
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir oxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx सर्व क्षेत्र अने प्रावृट् विगैरे सर्व काळमां अथवा सर्वात्मवडे वर्षे छे ते सर्ववर्षी, वीजा भांगाना विकल्पो आ प्रमाणेक्षेत्रथी देशमा अने काळथी सर्वत्र वर्ष छे १, क्षेत्रथी देशमा अने पोताथी सर्वात्मवडे वर्षे छे २, काळयी देशमा अने क्षेत्रथी सर्वत्र ३, काळथी देशमा अने पोताथी सर्वात्मवडे ४, अथवा पोताथी देशवडे अने क्षेत्रथी सर्वत्र ५, पोताथी देशवडे अने काळथी सर्वत्र ६, क्षेत्र अने काळथी देशमां अने पोताथी सर्वत्र ७, क्षेत्रथी देशमा. पोताथी देशवडे अने काळथी सर्वत्र ८, काळथी देशमां, पोताथी देशवडे अने क्षेत्रथी सर्वत्र ९-आ उक्त नव विकल्पोबडे जे मेघ वर्ष छे ते देशवर्षी अने सर्ववर्षी छे. चोथो भांगो सुज्ञात छे. (१३)१ राजा तो मेघनी जेम विवक्षित क्षेत्रमा ज योगक्षेम करवा समर्थ छे ते देशाधिपति परंतु सर्वाधिपति नहिते पल्लापति विगेरे. २ जे राजा पल्ली विगरे विभागमां समर्थ थतो नथी, बीजे स्थळे तो सर्वत्र समर्थ छे ते सर्वाधिपति परंतु देशाधिपति नथी ३, जे बन्ने स्थलनो अधिपति छ अथवा देशाधिपति थईने जे सर्वाधिपति थाय छे ते वासुदेवादिनी माफक देशाधिपति अने सर्वाधिपति होय छे. चोथो पुरुष राज्यभ्रष्ट जाणवो. चत्तारि मेहा पं० तं०-पुक्खलसंवद्वते पज्जुन्ने जीमूते जिम्हे, पुक्खलवट्टए णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससहस्साई भावेति, पज्जुन्ने णं महामेहे एगेणं वासेणं दस वाससयाई भावेति, जीमूतेणं महामेहे एगणं वासेणं दसवासाई भावति, जिम्हे णं महामेहे बहहिं वासेहिं एगं वासं भावेति वा ण वा भावेइ ४ (१५) सू. ३४७. चत्तारी करंडगा पं००-सोवागकरंडते वेसिता KoxxxoKKKKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only

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