Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 416
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थान xxxxxx नागपत्र सानुवाद ॥५३७॥ KXXXXXX कर्या. विमर्श-परीक्षाथी जेम वर्षातुने विषे कोईक देवकुलिका( देरी)मा केटलाएक महानुभाव साधुओ चातुर्मास रहेला. चातुर्मास - ४ स्थानपूर्ण थया बाद तेओ अन्यत्र गया. तेमाथी एक साधु पुनः ते देवकुलिकामां आवीने रह्यो त्यारे देवीए विचार्यु के-आ साधु केवो काभ्ययने छ ? एम तनी परीक्षा करवा माटे उपसर्ग करवा लागी. पृथक्-भिन्न भिन्न प्रकारनी मात्रा-हास्यादि वस्तुरूप छे जेओने विषे उद्देशः ते पृथग्विमात्रा, अथवा पृथग्-विविध मात्रावडे (आ लोप थयेल तृतीया विभक्तिना एकवचनवाडं पद जाणवू.) हासवडे उपसर्गाः करीने प्रद्वेषवडे उपसर्ग करे छे, एवी रीते संयोगवाळा थाय छे, जेम संगमक देव ज विमर्षद्वारा प्रद्वेषवडे उपसर्ग करतो हतो. सू०३६१ २, मनुष्य संबंधी हास्यथी, जेम गणिकानी पुत्री क्षुल्लक मुनिने उपसर्ग करती हती. क्षुल्लकमुनिवडे ते गणिकानी पुत्री दंडवडे ताडन कराई. बाद राजद्वारमा ते बन्नेनो विवाद थवाथी क्षुल्लकमुनिए भंडारनुं दृष्टांत कपु. [जेम राजाना भंडारनी चोरी करनारने ताडन कराय छे तेम आ गणिकानी पुत्री पण साधुना आचाररूप भंडारना शीलरूपी रत्नने चोरनारी छे माटे में तेणीने दांडावडे मारेल छे. ] प्रद्वेषथी जेम गजसुकुमार मुनि सोमिल ब्राह्मणद्वारा मराया. परीक्षाथी जेम चाणाक्यना कथनथी चंद्रगुप्त राजाए धर्मनी परीक्षा माटे अंतःपुरमा अन्यलिंगीओने बोलाव्या अने धर्मनी व्याख्या कराववाद्वारा क्षोभित कर्या, परंतु जैन साधुओने क्षोभ पमाडवाने माटे समर्थ न थयो. कुशील एटले अब्रह्मनुं प्रतिसेवन, तेनो भाव ते प्रतिसेवनता उपसर्ग अथवा कुशीलनु प्रतिसेवन छे जेओने विषे ते प्रतिसेवनको अथवा कुशीलनी प्रतिसेवनावडे एम व्याख्यान करवू.जेम वसति-उपाश्रय ___ *अन्यलिगोओनुं शील दृढ न होवाथी राजानी राणी विगेरेना रूपमा व्यामोह पाम्या अने साधुओ तो शीलमा दृढ होवाधी राणोनी सामु पण जोयु नहि. xn५३७॥ KxxxxxxxxxxXXXXXXxxxx For Private and Personal Use Only

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