Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 415
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX प्रद्वेषथी, आहारना हेतुथी तथा वाळक अने स्थाननी रक्षा माटे. (४) आत्मसंचेतनीय उपसर्गो चार प्रकारना कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ संघट्टणधी-आंखमा रज पडतां तेने हाथे चोळवाथी पीडा थाय छे. २ पडी जवाथी.३ घणी वार बेसवा विगेरे। बडे अंग झलाई जवाथी अंने घणो ४ काळ पग संकोचीने बेसवाथी वायुवडे तेमज पग लागी-मळी जवाथी. (५) (मू. ३६१) ___टीकार्थः-आ सूत्र सरळ हे. विशेष ए के-समीपे प्राप्त थवारूप अथवा धर्मथी जेओवडे भ्रष्ट कराय छे ते उपसगा-दुःखविशेषो, ते कर्त्ताना भेदथी चार प्रकारना छे. कयु छ केउसजणमुवसग्गो, तेण तओय उवसिज्जए जम्हा। सो दिव्वमणुयतेरिच्छ-आयसंवेयणाभेओ ॥२०॥ प्रायः उक्तार्थ छ. आत्मावडे · संचत्यन्ते '-कराय छ ते आत्मसंचेतनीयो १, तेमां दिव्य उपसर्गो ' हास' त्ति० हास्यथी थाय | छ अथवा हासवडे उत्पन्न थवाथी हासउपनगो. एवी रीते अन्य उपसर्गोमां पण जाणवू. जेम भिक्षाने अथै ग्रामांतरमा गयेल क्षुल्लक मुनिओए व्यंतरी पासे प्रार्थना करी के ' जो अमे इच्छित भोजन मेळवशुं तो तने उंडरेक (खडी) विगेरे आपशु' एम अंगीकार करीने इष्टभोजन प्राप्त थये छते 'आ तारुं छ' एम कहीन ते उंडरेकादि तेओए पोते ज खाधु. देवीए हास्यवडे तेओना रूपने छुपावीने तेओनी साथे क्रीडा करी. क्षुल्लक मुनिओ न आव्ये छते गच्छना मुनिओए व्याकुल थई आचार्य पासे निवेदन कयु के देवीए क्षुल्लकोने आ प्रमाणे विघ्न करेल छे. बाद वृषभ( समर्थ ) मुनिओए उंडरकादि याचीने ते देवीने आप्यु त्यारे ज तेणीए क्षुल्लक मुनिओने बताव्या. प्रद्वषथकी जेम संगमक देवे महावीर भगवंतने उपसर्गों XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only

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