Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 439
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ***** www.kobatirth.org भवण १० वण ८ जोइस ५ सोह-म्मीसाणे सत्त होंति रयणीओ । एकेकहाणि सेसे, दुदुगे य दुगे चउक्के य ॥ २२४ ॥ विजेसुं दोन्नी, एका रयणी अणुत्तरेसु । ति० दश भवनपति, आठ वानव्यंतर, पांच ज्योतिष्क अने सौधर्म तथा ईशानकलने विषे देवोनुं सात हाथनुं शरीर होय छे. श्रीजा चोथामा छ, पांचमा छट्टामां पांच, सातमा आठमामां चार, नत्रमाथी वारमा सुधीनां त्रण, नत्र ग्रैवेयेकमा अनुत्तर विमानोमां देवोनुं एक हाथनुं शरीर होय छे. भवधारणीय शरीरो आ प्रमाणे छे. अने पांच उत्तरवैक्रिय शरीरो तो उत्कृष्टथी एक लक्ष योजन पण संभवे छे. जघन्यथी तो भवधारणीय शरीरो उत्पत्तिकालमा अंगुला असंख्य भाग प्रमाणवाळा होय छे अने उत्तरखैक्रियो तो अंगुलना संख्येयभाग प्रमाणवाळा होय छे. ( सू० ३७५ ) अनंतर देव संबंधी वक्तव्यता कही अने देवो अप्कायपणार पण उत्पन्न थाय छे माटे उदक संबंधी गर्भनुं प्रतिपादन करवा माटे ' चत्तारि ' इत्यादि० वे सूत्र कहे छे चत्तारि उदकगभा पं० तं०-उस्ता महिया सीता उसिणा, चत्तारि उदकगब्भा पं० तं०मग अब्भसंथा सीतोसिणा पंचरूविता - माहे उ हेमगा गन्भा, फग्गुणे अन्भसंथडा । सीतो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only *************************

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