Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 438
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxx श्रीस्था- प्रमुख वितत, कांस्यतालादि घन अने वांसली प्रमुख शुपिर मानेल छे. (१) नाट्य, गेय अने अभिनय विषयक सूत्रोन वर्णन स्था नागपत्र संप्रदायना अभावथी करेल नथी. मालाने विष सुंदर ते माल्य, पुष्प-तेनी रचना पण माल्य, ग्रंथ-संदर्भ, मूत्रथी गुंथवा- माध्ययन | वडे बनावेलुं तं ग्रंथिममालादि, वेष्टन-वीटg, तेनावडे बनावेलुं ते वेष्टिम-मुकुट विगरे. पूर-पूरवावडे बनावेल ते पुरिम, माटीपानुवाद x उद्देशः ४ Xमय अनेक छिद्रवालं अथवा वांसनी शळी ओ विगेरेनुं पिंजरे अर्थात् जे पुष्पोरडे पूराय छे ते पूरिम, संघात-एकात्रेत ॥५४८॥ धर्मद्वारा| करवावडे बनावेल ते संघातिम, जे परस्परथी पुष्पनाल विगरेना जोडाणवडे उत्पन्न कराय छे ते. जेनावडे शोभा कराय ते युर्हेतुवाद्याअलंकार.केशो ए ज अलंकार ते के शालंकार, एवी रीते वस्त्रालंकार विगेरे जाणवू.(मू०३७४) देवना अधिकारबाळाचे सूत्रो सुगम छे. विशेष एके-सनत्कुमार अने माहेंद्र कल्पने विषे चार वर्णवाळा विभानो छे. अन्य कल्याने विरे तो जुही रीत छे. कयु छ के दिविमानसोहम्मे पंचवन्ना, एकगहागी उ जा सहस्सारो। दो दो तुल्ला कप्पा, तेग परंपुंडरीयाओ ॥ २२३ ॥ सौधर्म अने ईशान ए वे देवलोकमां पांच वर्णवाळा विमानो छ, त्रीजा अने चोथामा कृष्णवर्ग सिवायना चार, पांचमा IX अने छठामा नीलवर्ण सिवाय त्रण, सातमा अने आठमामां राता वर्ग सिवाय पीत अने श्वेत ए चे वर्ग अने नवमाथी * मांडीने छेक सर्वार्थसिद्ध पयतना विमानोमां एक श्वेतवर्ण छे. ते भवमा धारण कराय अथवा ते भव प्रत्ये धारण कराय ते भवधारणीय अर्थात् जे जन्मथी मरण पर्यत रहे. बीडेल मुष्टि ते रत्नि, अने ते ज खुल्ली आंगलीवाळी मुष्टि ते अरत्नि, एवु वचन होवा छतां पण रनि' शब्दबड़े अहिं सामान्य थी हाथ कवाय छे. शुक अने सहस्रार कल्पने विषे चार हाथना प्रमाणवाळा देवो छे. बीजा देवलोकने विषे तो जुदी रीते छ. कधु छ के XKXXXXXXXXX वर्णादि सू० Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxx xxxxxxx For Private and Personal Use Only

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