Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 420
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्था ४ स्थान. काभ्ययने उद्देशः ४ कर्मसङ्घः ॥५३९॥x बुद्धिः पापानुबंधी पाप. (१) चार प्रकारे कर्म कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक कर्म शुभपणे बांधल छे अने उदयमां पण शुभपणाए आवे छ, २ कोईक कर्म शुभपणे बांधल छ पण संक्रमकरणबडे अशुभप्रकृतिमां मळी जईने अशुभपणाए उदयमां आवे छे, ३ कोईक कर्म अशुभपणे बांधल छ पण संक्रमकरणवडे शुभपणाए उदयमां आवे छे अने ४ कोईक कर्म अशुभपणे बांधल छे अने अशुभपणे उदयमां आवे छे. (२) चार प्रकारे कर्म कहेल छे, ते आ प्रमाणे-प्रकृतिकर्म, स्थितिकर्म, अनुभावकर्म अने प्रदेशकर्म. (३) (सू० ३६२ ) चार प्रकारनो संघ (ज्ञानादि गुणना पात्रभूत जीवसमूह ) कहेल छ, ते आ प्रमाणेश्रमणो, श्रमणीओ, श्रावको अने श्राविकाओ. (सू० ३६३) चार प्रकारनी बुद्धि कहली छे, ते आ प्रमाणे-तात्कालिक उत्पन्न थती बुद्धि ते औत्पत्तिकी, विनयथी उत्पन्न थती ते वैनयिकी, कार्य करवाना सतत अभ्यासथी उत्पन्न थती बुद्धि ते कार्मिकी अने लांचा काळ पर्यंत अनुभव मेळववाथी उत्पन्न थती जे बुद्धि ते पारिणामिकी. चार प्रकारनी मति कहेली छे, ते आ प्रमाणेअवग्रहमति, इहामति, अवायमति अने धारणामति अथवा चार प्रकारनी मति कहेली छे, ते आ प्रमाणे-घडाना पाणी जेवी, विदर-विरडाना पाणी जेवी, तळावना पाणी जेवी अने सागरना पाणी जेवी. (सू० ३६४) चार प्रकारना संसारमा रहेला जीवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ नैरयिको, २ तिर्यंचयोनिको, ३ मनुष्यो अने ४ देवो. चार प्रकारे सर्व जीवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ मनयोगी, २ वचनयोगी, ३ काययोगी, ४ अयोगी. अथवा चार प्रकारे सर्व जीवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे१ स्त्रीवेदवाळा, २ पुरुषवेदवाळा, ३ नपुंसकवेदवाळो अन ४ अवेदको. अथवा चार प्रकारे सर्व जीवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे१चक्षुदर्शनी, २ अचक्षुदर्शनी, ३ अवधिदर्शनी अने ४ केवलदर्शनी. अथवा चार प्रकारे सर्व जीवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे जीवाः सू०३६२ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx X॥ ५३९॥ For Private and Personal Use Only

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