Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 417
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXXXXXXXX xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxOKOOK) माटे प्रोषित-परदेश गयेला भर्तारवाळी इर्ष्यालु स्त्रीना घरने विष सायंकालना समये साधु आव्या त्यारे ते इर्ष्यालु एवी चार स्वीओए साधुने रद्देवा माटे आवास आप्यो. पछी दरेक स्त्रीए चार प्रहर पर्यंत साधुने उपसर्ग कर्यों पण ते क्षोभ न पाम्या ३. भयथी श्वान विगेरे तिर्यचो करडे छे, प्रद्वेषथी चंडकोशिक नाग भगवानने डश्यो (डंख मार्यो), आहारना हेतुथी सिंह विगेरे अने संतान तथा स्थाननी रक्षा करवा माटे कागडी विगेरे उपसर्ग करे ४. आत्मसंचेतनीया-पोताथी करायेला उपसर्गो. घट्टणता-घस, अथवा घसवावडे, जेम आंखमां रज पडवाथी आंखने हाथवडे मशळी तेथी दुःखने माटे शरूआत करी अथवा स्वयमेव आंखमां के गळामां मांसना अंकुर विगेरे थयेल होय तेने घसे, प्रपतनता-पडवापणुं अथवा पडवावडे जेम उपयोग विना चालनारनुं पतन थवाथी दुःख उत्पन्न थाय छे ते, स्तंभनता अथवा स्तंभनवडे, जेम त्यां सुधी बेठो ऊभो रह्यो अने सूतो के ज्यां सुधी पग विगेरे स्तब्ध-अकडाई जाय ते स्तंभनता, श्लेषणता अथवा श्लेषणावडे, एवी रीते पगने | संकुचीने रह्यो के जेथी वायुवडे पग रही गयो-मळी गयो. अहिं आ संबंधी गाथाओ दर्शाये छ हास १ पदोस २ वीमंसओ ३, विमायाय ४ वा भवे दिव्यो। एवं चिय माणुस्सो, कुसीलपडिसेवणचउत्थो ॥ २१ ॥ तिरिओ भय १ प्पओसा २-ऽऽहाराऽ३वच्चादिरक्खणत्थं वा ४ । घट्टण १ थंभण २ पवडण ३, लेसणओ वाऽऽयसंचेओ ४ ॥ २११ ॥ KXxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only

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