Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
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तुच्छ छे अने बाह्य वृत्तिथी तुच्छ जेवो देखाय छे एम पूर्वोक्त रीते चोथा सूत्रनी माफक चोभंगी जाणवी (८) (मू० ३५८)
टीकार्थः 'चत्तारी' त्यादि० सूत्रो स्पष्ट छे. विशेष ए के-उदक-पाणी कहेला छे तेमां १ कोईक जळ उत्तान-तुच्छपणाथी छीछरूंछे, वळी स्वच्छपणाने लईने मध्य स्वरूप देखातुं होवाथी उत्तानोदक छे. ('उत्ताणोदये त्ति० आ निर्देश, समासरहित प्राकृतशैलीने अंगे समस्त पदनी जेम जणाय छे). मूलमा स्वीकारेल उदक शब्दवडे आ पद कहेल अर्थवाळू थशे एम कहेवू नहिं, केम के तेनुं (उदक शब्दनु) बहुवचनांतपणावडे अहिं असंबंध्यमानपणुंछे. साक्षात् उदक शब्द छे तो बहुवचनांत उदक शब्दने लाववावडे तेना वचनना परिणामी शुं प्रयोजन छ? एवी रीते उदधि सत्रने विषे पण भाव. तथा २ उत्तान पूर्वनी जेम अने गंभीर उदक मलिन होवाथी तेनुं स्वरूप जणातुं नथी, ३ गंभीर-बहु जळ होवाथी अगाध छे अने स्वच्छपणाने लईने मध्य स्वरूप देखातुं होवाथी उत्तानोइक छ, ४ अगाध होवाथी गंभीर, वळी मलिन स्वरूप होवाथी गंभीरोदक छे. (१)१ पुरुष तो उत्तान-बहारथी देखाडेल मद अने दीनता विगेरेथी थयेल विकृत शरीर ने वचननी चेष्टाथी अगंभीर-तुच्छ छे, वळी दैन्य विगेरे गुणथी युक्त अने गुह्यने धारण करवामां असमर्थ चित्तवाळो होवाथी उत्तान-तुच्छ(हृदय) छ-आ एक, बीजो कारणवशात् देखाडेल विकृत चेष्टाथी उत्तान छे अने, खभावथी उत्तान हृदयना विपरीतपणाथी गंभीर हृदयवाळो छ, त्रीजो तो दैन्यादिवाळो छते पण कारणवशात् आकारने 'गोपववावडे गंभीर अने उत्तानहृदय पूर्वनी जेम अर्थात् स्वभावथी तुच्छ हृदयवाळो छे अने चोथो प्रथम भंगथी विपरीत होवाथी बाह्यथी अने अंतरथी गंभीर छे. (२) तथा प्रतलपणाथी-थोडं पाणी होवाथी उत्तान अने स्थानविशेष. थी उत्तान जेवो देखाय छे-आ एक, द्वितीय-उत्तान पूर्ववत् पण सांकडा स्थान विगेरेथी अगाध जेवो देखाय छे,
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