Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 396
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थानाङ्गमत्र खानुषाद ॥५२७॥ Ex xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx क्षेत्रमाथी लावीने खळामा मृकेल धान्य समान-बहुतर अतिचारवाळी प्रव्रज्या. (८) (सू०३ ५५) टीकार्थः-आ सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-१ मात्र उदरभरणादि इच्छावाळानी जे दीक्षा ते इहलोकप्रतिबद्धा, २ भवांतर संबंधी कामभोगनी इच्छावाळानी जे दीक्षा ते परलोकप्रतिबद्धा, ३ उभय लोक संबंधी मुखना अभिलाषीओनी जे दीक्षा ते द्विधालोकप्रतिबद्धा अने ४ विशिष्ट सामायिक चारित्रवाळाओनी जे दीक्षा ते अप्रतिबद्धा. (१) पुरतः-प्रव्रज्या लेवाथी भविष्यमां थनारा शिष्य अने आहारादिने विषे आगळथी प्रतिबंधवाळी जे दीक्षा ते १ पुरतःप्रतिबद्धा कहेवाय छे. एम स्वजनादिने विष (स्नेहवडे पाछळथी लीधेल दीक्षा) ते २ मार्गतःप्रतिबद्धा कहेवाय छे. ३ कोईक प्रव्रज्या आगळथी अने पाछळथी पण एम द्विधाप्रतिबंधवाळी छ अने ४ कोईक अप्रतिबद्धा पूर्वनी जेम छे. (२) 'ओवाय' त्ति०-अवपात-सद्गुरुओनी सेवा, तेथी जे प्रव्रज्या ते १ अवपातप्रव्रज्या, २ 'तुं दीक्षा ले' एम कहेवाथी दीक्षा लेनारनी जे प्रव्रज्या ते आख्यातप्रव्रज्या-आर्यX| रक्षितमूरिना भाई फल्गुरक्षितनी जम, ३'संगार' त्ति०-संकेतथी जे प्रव्रज्या--मेतार्यादिनी जेम अथवा ज्यारे 'तं दीक्षा | लईश त्यारे हुं पण लईश' एम संकेतथी जे दीक्षा ते संकेतप्रव्रज्या, ४ 'विहगगड़ ' त्ति विहगगतिवडे-पक्षी जेम बीजे जाय छे ते न्यायवडे परिवारादिना वियोगथी अने देशांतरमा जवावडे एकलानी जे दीक्षा ते विहगगतिप्रव्रज्या, क्यांक 'विहगपव्वजे' ति० पाठ छे त्यां पक्षीनी जेम एम जाणवू, अथवा विहत-दारिद्रवडे के शत्रुओबडे पराभव पामेलनी जे दीक्षा ते विहतप्रव्रज्या. (३) तुयावइत्त' त्ति० व्यथा( पीडा) उत्पन्न करीने जे दीक्षा देवाय छे ते १ तोदयित्वा प्रव्रज्या, सागरचंद्र मुनिवडे अपायेल मुनिचंद्र नृपना *पुत्रनी जेम. 'उयावइत्त' त्ति० एवो क्यांक पाठ छे त्यां ओज * आ कथा मुनिपनि चरित्रमा छे. ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः४ इहलोकप्रतिबद्धा| दिप्रव्रज्या भेदाः सू०३५५ ॥५२७ ॥ For Private and Personal Use Only

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