Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
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समाना कहेवाय छे. चौथी तो क्षेत्रथी लावेल अने खळामा राखेल धान्यना जेबी जे प्रव्रज्या, ते बहुतर अतिचार सहित होवाथी बहुतर काळवडे प्राप्त करवायोग्य स्वस्वभाववाळी छे ते धान्यसंकर्षित समाना जाणवी. अहिं धान्यना विशेषण पुंजित विगरे शब्दनो प्राकृतशेलीथी परनिपात करेल छे. (८) (सू० ३५५) आ प्रव्रज्या संज्ञाना वशथी आ प्रकारे विचित्र प्रकारे | होय छे तेथी संज्ञानुं निरूपण करवा माटे सूत्रपंचक कहे छे
चत्तारि सन्नाओ पं० त०-आहारसन्ना भयसन्ना मेहणसन्ना परिग्गहसन्ना (१) चउहिं ठाणेहिं आहारसन्ना समुप्पज्जति, तं०-ओमकोट्टताते १ छहावेयणिजस्स कम्मस्स उदएणं २ मतीते ३ तट्रोवओगेणं ४ (२) चउहि ठाणेहिं भयसन्ना समुप्पजति, तं०-हीणसत्तत्ताते १ भयवेयणिजस्स कम्मस्स उदएणं २ मतीते ३ तदट्ठोवओगेणं ४ (३) चउहि ठाणेहिं मेहुणसन्ना समुप्पजति, तं०-चितमंससोणिययाए १ मोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं २ मतीते ३ तदट्ठोवओगेणं ४(१) चउहि ठाणेहिं परिग्गहसन्ना समुप्पजइ, तं०-अविमुत्तयाए लोभवेयाणिजस्स कम्मस्स उदएणं मतीते तदवोवओगेणं (५) सू० ३५६, चउबिहा कामा पं० तं०-सिंगारा कलुणा बीभत्सा[च्छा] रोहा, सिंगारा कामा देवाणं कलणा कामा मणुयाणं बीभत्सा कामा तिरिवखजोणियाणं रोहा कामा
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