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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ।। ५०५ ।।
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हा दुष्ट नथी, २ बोईक व्रण पर विगेरे नविाथी बहार दृष्ट छे पण अंदर दुष्ट नथी, ३ कोईक व्रण अंदर अने बहार दुष्ट छे अने ४ कोईक व्रण अंदर के बहार दुष्ट नथी. (३) ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे. ते आ प्रमाणे१ कोईक पुरुष अंदरथी दुष्ट छे रण बहारथी दुष्ट नथी- सौम्य देखाय छे, २ कोईक पुरुष कारणवशात् बहारथी दुष्ट देखाय पण अंदरथी दुष्ट नथी, ३ कोईक अंदर अने बहारथी दुष्ट छे अने ४ कोईक अंदर के बहारथी दुष्ट नथी. (४) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ कोईक पुरुष श्रेयांस प्रशंसायोग्य भाववाळो छे अने सदनुष्ठानवाळो छे ते साधु, २ कोईक प्रशंसा योग्य भावबाटो छे पण अविरतिपणाने लईने पापवाळो हे- ते समकिती, ३ कोईक मिध्यात्वी होवाथी पापवाळो पण कारणवशात् सदनुष्ठानवाळो हे उदायी नृपने मारनार कपटीनी जेम अने ४ कोई अप्रशस्य भाववाळो अने पाप अनुष्ठानवाळो - काल सौकरिकनी जेम (१) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- १ एक पुरुष भावथी श्रेयांस छे अने द्रव्यथी बीजाने प्रशंसवा योग्य बुद्धि उत्पन्न करवावडे श्रेयांस तुल्य छे, २ कोई पुरुष भावथी श्रेयांस छे पण द्रव्यथी 'आ पापी छे' एवी बुद्धि बीजाने उत्पन्न करवावडे पापांशतुल्य छे, ३ कोईक भावथी पापांश छे पण द्रव्यथी श्रेयांस तुल्य छे अने ४ कोई भावथी पापांश अने द्रव्यथी पण पापांश तुल्य छे. (२) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाण- १ कोईक पुरुष प्रशंसवा योग्य छे अने पोताना आत्माने श्रेष्ठ माने छे २ कोईक श्रेष्ठ हे पण पोताना आत्माने पापी माने छे दृढप्रहारी मुनिनी जेम, ३ कोईक पापी छे पण पोताना आत्माने श्रेष्ठ माने छे - कुतीर्थिकवत् अने ४ कोईक पापी छे अने पोताना आत्माने पापी माने - सद्बोधवाको होवाथी. (३) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक पुरुष भावधी श्रेष्ठ छे अने द्रव्यथी
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४ स्थान
काध्ययने
उद्देशः ४ व्याधि
चिकित्सा
चिकित्सक
व्रणशल्य
श्रेयः पापाख्यायका| दि० सू० ३४२४४
।। ५०५ ।।