Book Title: Sramana 2013 10
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 9
________________ 2 : श्रमण, वर्ष ६४, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ २. कला में उकेरी कथा किसी मान्यता अथवा अवधारणा को स्थापित करती है? क्या वह अवधारणा पूरे भारतीय सन्दर्भ को उद्घाटित करती है अथवा किसी धर्म विशेष या देव विशेष अथवा व्यक्ति विशेष का ही प्रतिनिधित्व करती है? ३. हम इस प्रश्न का भी सम्भावित उत्तर खोजने का प्रयास करेंगे कि कैसे कोई मान्यता सार्वभौमिक होकर अनिवार्य मानवीय मूल्य और सामाजिक आदर्श का रूप ग्रहण कर लेती है। प्रस्तुत लेख में उपर्युक्त सन्दर्भो में ही “तीर्थंकर शान्तिनाथ के जीवनदृश्यों का साहित्यिक एवं कलात्मक विवेचन भारतीय परम्परा की पृष्ठभूमि में" प्रस्तुत हुआ है। सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ जैन परम्परा के २४ तीर्थंकरों में एक है जो पांच प्रमुख तीर्थंकरों (ऋषभनाथ, सुपार्श्वनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर) में भी महत्त्वपूर्ण हैं। नाम और लांछन (मृग शान्ति का प्रतीक) के साथ ही शान्ति की प्रभावना की दृष्टि से भी शान्तिनाथ का विशिष्ट महत्त्व है। यही कारण है कि उत्तर-प्रदेश और मध्य-प्रदेश के दिगम्बर परम्परा के अनेक कला-केन्द्रों से हमें शान्तिनाथ की मूर्तियों एवं जिनालयों के बहुसंख्यक प्रमाण मिलते हैं। साथ ही इन क्षेत्रों के उकेरी महाप्रमाण मूर्तियाँ भी शान्तिनाथ की विशेष प्रतिष्ठा को ही प्रमाणित करती हैं। शान्तिनाथ के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित कथा का विस्तृत वर्णन मुख्यत: ११वीं शती ई० के बाद के श्वेताम्बर जैन ग्रन्थों यथात्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (हेमचन्द्रसूरि कृत, १२वीं शती ई.) तथा श्रीशान्तिनाथ चरित्र (भावचन्द्र सूरि कृत, १४वीं शती ई०) में प्राप्त होता है। शान्तिनाथ के जीवन से सम्बन्धित कथा का उल्लेख लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृत विद्या मन्दिर, अहमदाबाद संरक्षित श्री शान्तिनाथ चरित्र शीर्षक पाण्डुलिपि में भी उपलब्ध है। यह पाण्डुलिपि आचार्य अजितप्रभ सूरि द्वारा १४वीं शती ई० के उत्तरार्ध (वि०सं०

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