Book Title: Sramana 2013 10
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 43
________________ 36 : श्रमण, वर्ष ६४, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ इस कोश में २०० श्लोको में संस्कृत भाषा के प्रमुख शब्दों का संकलन कर गागर में सागर भरने का प्रयास किया गया है। वस्तु कोश - कवि शिरोमणि नागवर्म द्वितीय ने जहाँ संस्कृत में भाषा-भूषण नाम उत्कृष्ट व्याकरण की रचना की वहीं कनड़ भाषा में प्रयुक्त होने वाले संस्कृत शब्दों के अर्थ हेतु पद्यमय निघण्टु या वस्तु कोश की रचना की। इसका समय ११३९११४९ ई० है। अभिधानचिन्तामणि - जैन कोशों में अभिधानचिन्तामणि का विशिष्ट स्थान है। इसके रचयिता आचार्य हेमचन्द्र हैं। इस कोश में जैन पारिभाषिक शब्दों का वर्णन मिलता है। इसकी तुलना अमर कोश से करते हैं। इसमें छ: काण्ड है१. देवाधिदेव काण्ड, २. देवकाण्ड, ३. मर्त्यकाण्ड, ४. तिर्यक्काण्ड, ५. नारक काण्ड और ६. साधारण काण्ड ।। अनेकार्थ संग्रह - इस कोश में प्रत्येक शब्द के अनेक अर्थ प्रतिपादित किये गये है। इस कोश के रचनाकार आचार्य हेमचन्द्र हैं। इस कोश में १८८९ पद्य हैं। यह कोश अभिधानचिन्तामणि के बाद रचा गया है। निघण्टु शेष - इसे वनस्पति कोश भी कहते हैं इसमे छ: काण्ड हैं- वृक्ष, लता, गुल्म, शाक, तृण और धान्य काण्ड। इसकी श्लोक संख्या ३९६ है। इसके रचनाकार आचार्य हेमचन्द्र है। श्लिोज्छ कोश - अभिधानचिन्तामणि के दूसरे परिशिष्ट के रूप में यह कोश बनाया गया है। रचनाकार जिनदेव मुनि हैं। जिनरत्नकोश के अनुसार इनका समय १४३३ के आसपास है। इसमें १४० श्लोक प्राप्त होते हैं। नाममाला कोश - इसके रचयिता सहजकीर्ति हैं। इनके निश्चित काल का ज्ञान नहीं हो पाया है। कोश के आधार पर आपका समय सोलहवीं शताब्दी निश्चित होता है।

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